Sunday, 5 December 2010

मुक्ति का सौन्दर्य


मैं वापस कर आया हूँ उनका दिया हुआ रोबदार हैट
वजनदार बूट और तमाम गुनाहों में सनी लकदक वर्दी
मैं छोड़ आया हूँ वह मेज और कुर्सी भी जिस पर बैठ कर
बेबसी में चाहे अनचाहे करने पड़े थे
घटिया और घ्रणित समझौते
आज खुली हवा में साँस लेट हुए
मैं महसूस कर सकता हूँ कि जीवन कितना सुन्दर है .

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