मैं वापस कर आया हूँ उनका दिया हुआ रोबदार हैट
वजनदार बूट और तमाम गुनाहों में सनी लकदक वर्दी
मैं छोड़ आया हूँ वह मेज और कुर्सी भी जिस पर बैठ कर
बेबसी में चाहे अनचाहे करने पड़े थे
घटिया और घ्रणित समझौते
आज खुली हवा में साँस लेट हुए
मैं महसूस कर सकता हूँ कि जीवन कितना सुन्दर है .
No comments:
Post a Comment