Wednesday 15 December, 2010

चेखव के पत्र पढ़ते हुए


आज चेखव की मृत्यु के पचास वर्ष बीत चुके हैं |उनके पत्रों को पढ़ते हुए क्षण भर के लिए भी यह आभास नहीं होता कि हम किसी बड़े लेखक के पत्र पढ़ रहे हैं |इतना बड़ा लेखक इतना सहज और सरल हो सकता है कमाल है |उनके
पत्र आत्मीय ,स्वतंत्र और दिलचस्ब होते है |पत्र की एक बानगी -
भला यह क्या बात हुई ?आखिर आप है कहाँ ?आप की कोई खबर ही नहीं है |हम है कि अंदाज पर अंदाज लगाये जा रहे है |अब तो हमने यह सोचना शुरू कर दिया है कि आप ने हमें पूरी तरह भुला दिया है |लगता है इस लेखक को आप
बुरी तरह भूल चुकी है |यह ओल्गा विन्प्पेर को लिखे गए पत्र का छोटा सा अंश है|सच में चेखव अपनी साधारणता के
कारन असाधारण थे |

No comments:

Post a Comment