Wednesday 25 May, 2011

भगवान स्वरूप कटियार
औद्योगिक पूंजीवाद के उदयही के साथ अपराध की मानसिकता ने नये आयाम ग्रहण किये और लोगों के जीवन मूल्यों और द्दश्टिकोण में भारी बदलाव ला दिया .येनकेन प्रकारेण पैसा बटोरना लोगों का मुख्य लक्ष्य बन गया और पैसा षक्ति,प्रतिश्ठ और सामाजिक स्थिति का मापदण्ड बन गया जिसके कारण घोटाले आम हो गये.कार्पोरेट जगत की अबारा पूंजी ने हमारी अर्थ व्यवस्था को कितना दयनीय और कमजोर किया है इसका अन्दाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि केन्द्र सरकार ने कार्पोरेट जगत के आयकर का ३,७४,९३७ करोड़ रुपया वित्तीय वर्श २॰॰५-२॰॰६ से २॰१॰-२॰११ के लिए माफ कर दिया .यह धनराषि २जी स्पेक्ट्रम घोटाले से दोगुनी से भी अधिक है. ऐसी सरकारों से कले धन की वापसी और भ्रश्टाचार को समाप्त करने की उम्मीद कैसे कर सकते है जो कर्पोर्ेट घरानों को बेतहासा लूट की छूट दे रहीं हैं. आयकर माफी की इस धनराषि में लगातार वृध्दि होती गयी.२॰॰५-२॰॰६ में ३४,६१८ करोड़ का आयकर माफ किया गया था जो २॰११-२॰१२ के बजट में ८८,२६३ करोड़ पहुंच गया यानि कि १५५ फीसदी की बढ़त . इस प्रकार देष रोज २४॰ करोड़ रुपये का आयकर कार्पोरेट जगत का माफ कर रहा है .देष का मध्य वर्ग और किसान महगाई की मार से जूझ् रहा है और कार्पोरेट जगत मलाई खा रहा है. “ग्लोबल फाइनेंसियल इन्टिग्रिटी“ की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग इतनी ही धनराषि रोज काले धन के रूप में देष से बाहर भी जा रही है. बिडम्बना तो यह है कि ८८,२६३ करोड़ का आयकर कार्पोरेट जगत का माफ कर दिया और दूसरी ओर करोड़ों रुपये की कटौती कृशी बजट में कर दी.इस प्रकार देष के लोगों का गला घोंट कर कार्पोरेट जगत को पाला पोशा जा रहा है जबकि इनसे देष का कुछ भी भला होने वाला नहीं है क्योंकि व्यापारी और पूंजीपति का कोई देष नहीं होता़ .
अगर हम कार्पोरेट कर्ज माफी,सीमा षुल्क और उत्पाद षुल्कों में दी गयी राहत ( इसका सबसे ज्यादा लाभ समाज के धनी तबके और कार्पोरेट जगत को मिलता है) से होने वाले आय में नुक्सान को जोड़ दें तो चौकाने वाले आकड़े सामने आते हैं . “सोने और हीरों“ पर सीमा षुल्क की छूट दी गयी ,ये आम आदमी के उपयोग की चीजें तो नहीं हैं पर इन पर दी गयी छूट से देष को ४८,७९८ करोड़ रुपये का नुक्सान हुआ़.यह राषि सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर खर्च की गयी धन राषि की आधी है.इसके पहले तीन सालों में सोने,हीरे और आभूशणों पर सीमा षुल्क पर दी गयी छूट से देष को ९५,६७५ करोड़ का नुक्साान हुआ था. इस छूट का भोड़ा तर्क यह है कि हीरे और सोने में छूट भुमण्डलीकरण के दौर में गरीब कामगारों को नौकरी बचाने के लिए दी गयी है. पर इससे एक भी नौकरी नहीं बची . आभूशण उद्योग में लगे सूरत (गुजरात ) के तमाम कारीगर अपनी नौकरी गवां कर अपने वतन लौट गये और कुछ ने निराषा और हताषा में डूब कर जान दे दी . इसी प्रकार महाराश्ट्र में भी इसी उद्योग में वर्श २॰॰८ में औसतन प्रतिद्न १,८॰॰ कामगारों ने नौकरियां गमायीं. आखिर सरकार का खजाना भी लुटा और लोगों के जान पर भी बन आयी. कार्पोरेट जगत द्वारा सरकारी धन की यह लूट और बढ़ती बेतहासा बेरोजगारी देष को जिस दिषा की ओर ले जा रही है वह न सिर्फ खतरनाक है बल्कि विस्फोटक भी . सरकार की इन्हीं घटिया नीतियों के कारण देष में अवैध धन और काली कमाई में भारी बढ़ोत्तरी हुई. अवैध कमाई से धन बाहर ले जाने में विदेषी मुद्रा भंडार घटता है और सरकार को करों से होने वाली कमाई कम होती है़ जिसके कारण विकास योजनाओं के लिए अपेक्षित धन नहीं मिल पाता और इससे देष का गरीब लगातार पिसता है.चौकाने वाला तथ्य यह है कि हमारे देष में जितना सकल घरेलू उत्पाद पैदा होता है उसका आधा अवैध धन काले धन के रूप में पैदा होता है. काली अर्थव्यवस्था में लगी २८ प्रतिषत परिसम्पत्तियां देष में और ७२ प्रतिषत विदेषों में हैं .जाहिर है लोग अवैध सम्पत्तियां विदेष् में रखना चाहते हैं जिससे कानून के षिकंजे से बचा जा सके .
बजट में मषीनरी मद में सीमा षुल्क में भारी छूट दी गयी है जिसमें बड़े कार्पोरेट अस्पतालों द्वारा आयात किये जाने वाले अति आधुनिक चिकित्सा उपकरण क्रय किये जाते हैं जिन पर लगभग कोई ड्यूटी नहीं लगती . अरबों रुपये के इस उद्योग में अन्य छूटों के अलावा यह लाभ लेने के पीछे दावा ३॰ प्रतिषत षैय्याएं गरीबों को मुफ्त उपलब्ध कराने का है पर ऐसा होता कभी नहीं है. हर लूट में पिसता गरीब ही है.इस तरह की छूट से सरकार को लगभग १,७४,४१८ करोड़ का चूना लगता है जबकि इसमें आायात-निर्यात ऋण के रूप में दिये जाने वाली राहतें षामिल नहीं है. उत्पाद षुल्क मेम छूट दिये जाने के पीछे तर्क दिये जाते हैं कि इससे उपभोक्तााओं को उत्पाद कम कीमत पर उपलब्ध हो जाते हैं पर ऐसा होता भी है इसका सबूत ना तो सरकार के पास है और ना ही उपभोक्ता के पास है.ऐसा ही दावा २जी स्पैक्ट्रम घोटाले में भी किया जाता है कि कोई लूट नहीं हुई बल्कि उससे उपभोक्ताओं को सस्ती काल दरें उपलब्ध करायी गयीं हैं लेकिन सच्चई यह है कि उत्पाद षुल्क की इस माफी का सीधा लाभ उद्योग और व्यापार जगत को हुआ.उत्पाद षुल्क की इस माफी के कारण सरकार को १,९८,२९१ करोड़ का नुक्सान हुआ है. इस तरह की सारी रियायतों से विभिन्न तरीकों से धनाढ्यवर्ग ही लाभान्वित होता है. आयकर,उत्पाद षुल्क,तथा सीमा षुल्क की माफी की चलते कुल मिला कर सरकार को कितना नुक्सान होता है?वर्श २॰॰५-६ में नुक्सान की यह राषि २,२९.१॰८ करोड़ रुपए थी जो २॰११-१२ के बजट में दोगुने से अधिक ४,६॰,९७२ करोड़ रुपये हो गयी .इस प्रकार वर्श २॰॰५-६ से२॰११-१२ तक इन रियायतों में सरकार को कुल २१,२५.॰२३ करोड़ रुपये का नुक्सान हुआ ,यानी लगभग आधा ट्रिलियन अमेरिकी डालर है. यह रकम २जी घोटाले से १२ गुना से भी अधिक तथा विदेषों में जमा अवैध काले धन २१लाख करोड़ से भी अधिक है़ और यह लूट पिछले ६ वर्शों में हुई.
सरकारी खजाने को होने वाला आय का यह नुक्सान हर साल बढ़ता जा रहा है.एक तरफ सरकार के पास सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए पैसा नहीं हैं और सबसे बड़ी भूखी आबादी के लिए दी जाने वाली सब्सिडी की कटौती कर रही है. हमारे देष में लूट का यह तंत्र सुनियोजित ढंग से चल रहा है जिसे राजनीत- अफसरषाही-व्यवसाय- अपराधिक जगत का गठबंन्धन चला रहा है.यह गठबंन्धन अटूट और अत्यन्त प्रभावषाली है जिसे पार पाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है.हाल के घोटालों से यह उजागर हो गया है कि रिष्वत अब “ अण्डर दि टेबुल“ की घटना नहीं रही बल्कि लेन देन खुलेआम हो रहा है. प्रधान मंत्री के मानद सलाह्कार षिकागो विष्वविद्यालय के अर्थषस्त्री गोविन्द राजन ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि भारत में जनतंत्र नहीं बल्कि अल्पतंत्र है. उन्होंने स्पश्ट कहा देष के नेता अपराधिक ताकतों से सांठगंाठ कर देष को लूट रहे हैं. देष में घोटाले होते हैं,जांच आायोग और जांच समितियां रिपोर्टे देती हैं पर अपराधियों को सजाएं नहीं होती और होती भी हैं तो ना के बराबऱ् आरोपित नेता सत्तासुख निरन्तर भोगते रहते हैं. घोटालों और भ्रश्टाचार में लिप्त लोग धनाढ्य और पढे़ लिखे लोग ही होते हैं.श्रम की सत्ता को पीछे धकेल कर जब पूंजी की सत्ता अपना वर्चस्व कायम कारती है तो वह पूरी व्यवस्था को भ्रश्ट कर देती हैं और लोग भ्रश्टाचार समाप्त करने की बजाय उसमें अपनी हिस्सेदारी तलाषने लगते हैं. यह एक जटिल और कठिन लडा़ई है जो खुद अपने खिलाफ है षायद इसीलिए कठिन और जटिल है पर लड़नी तो है और लड़ी भी जारही है , अपने-अ्पने तरीके से पर जनता की सीधी भागीदारी के बिना इसे जीतना संभव नहीं है़.

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