Sunday 19 June, 2011

मकबूल की मकबूलियत पर दुनियां फिदा

भगवान स्वरूप कटियार
मकबूल फिदा हुसेन एक तरह से अपनी पूरी उम्र पूरि सक्रियता के साथ जी और जीने और काम करने का जोस खरोश आखिरी दम तक खत्म नहीं हुआ . उनका मानना था कि जिन्दगी में मुश्किलें , दिक्कतें , और तकलीफें तो मुतवातिर रहती ही हैं और हमेशा रहेंगी पर इससे जिन्दगी थोड़े ही रुक जाती है . व्ह तो एक दरिया है जिसे मुतवातिर बहना है तो बहना है . तमाम बाधाओं और रुकावटों के बाबजूद दरिया की तरह जिन्दगी भी अपना रास्ता ढूढ़ ही लेती है. यह था हुसेन साहब के जीने का फलसफा जो मरने के बाद रंगों की दुनिया को उदासा कर गये . उनके शोख रंग कूंची जिनसे उन्होंने जिन्दगी को तमाम नये शेड्स दिये रंज डुबे में अपने अजीज चित्रकार को याद कर रहे हैं .मकबूल सच में मकबूल थे तभी तो वे अपने दोस्तों और दुष्मनों में एक साथ याद किये गये . अन्त में बाल ठाकरे साहब ने भी अपनी ख्वाहिश में कहा कि हुसेन साहब का शव हिन्दुस्तान वापस आना चाहिए क्योंकि वे बुनियादीरूप से हिन्दुस्तान के थे और सच्चे हिन्दुस्तानी थे . यद्यपि कुछ कट्टर हिन्दुत्ववादियों की बजह से उनकी कुछ हिन्दू देवी देवताओं की पेन्टिग्स को लेकर वे हिन्दुस्तान छोड़कर कतर चले गये और वहां के नागरिक हो गये . इस महान चित्रकार का जन्म महाराष्ट्र के पंढरपुर गाँव में १७ सितम्बर १९१५ में हुआ था . उनके पिता का निधन हुसेन के बचपन में ही हो गया था. ९५ वर्शीय हुसेन का निधन लंदन के रॉयल ब्रोम्प्टन अस्पताल में ९जून २॰११ में हुआ . फोर्ब्स पत्रिका ने हुसेन को भारत का पाब्लो पिकासो कहा . हुसेन ने पेंन्टिग का कहीं विधिवत प्रषिक्षण नहीं लिया . षुरुआती दिनों में वे मुम्बई में फिल्मों की होर्डिंग पेन्ट किया करते थे जिसके लिए उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे हुसेन किसी लीक पर चलने वाले चित्रकार नहीं थे बल्कि लीक तोड़कर कुछ नया जिसमें जोश ख़रोश और ताजगी के साथ साथ षोखी और कषिष भी हो . वे एक आजाद खयाल इंसान थे . हुसेन संम्पूर्णता से कभी आकर्शित नहीं होते थे और ही कभी उसके पीछे भागे ही . उनके लिहाज से संम्पूर्णता का अर्थ है समाप्ति ,अन्त ,मृत्यु जबकि हुसेन की कला का सत्य निरंतरता और प्रवाह है . वे जिन्दगी को भी इसी नजरिये से देखते हैं . जीवन कभी रुकता नहीं है बल्कि मृत्यु से परे भी जीवन है जीवन की नयी शुरुआत के रूप में.जब रजस्थान की पृष्ठभूमि पर वेथ्रू दि आइज आफ पेन्टर' फिल्म बना रहे थे तो किसी ने पूछा कि फिल्म की कहानी क्या है तो हुसेन साहब ने कहा इस फिल्म में कोई किस्सा कहानी नहीं है ,बस कुछ इम्प्रेसन्स ,कुछ शक्लें .कुछ सूरतें, एक छतरी ,एक लालटेन ,एक जोड़ी रजस्थानी जूते और एक गाय तथा राजस्थानी लोक जीवन के कुछ सुर ताल . हुसेन की द्दष्टि में हर चीज का अपना का अपना ओज है अपना आलोक है ओर उसकी उपस्थिति में ही उसकी पवित्रता निहित है . हुसेन कहते हैं कि अक्सर लोग लालटेन को देखने के बजाय चारो ओर उसकी मौजूदगी की बजह ढूंढते हैं , वह जल रही है तो रात और बुझी हे तो दिन . यह कोई नहीं देखता कि लालटेन किस नाज--अन्दाज से जमीन पर टिकी है . उसके पेंदे की गोलाई से उठती दो संतुलित बाांहों के बीच धरी षीषे की चिमनी , गुम्बद की गोलाइ ओर संम्पूर्ण ब्रम्हांन्ड का सिमिटा हुआ उजाला . यह हुसेन हैं जो सिमटे हुए उजाले में ब्रम्हांन्ड देख् लेते हैं . उनके लिए सुन्दरता उसमें नहीं है जिसका कोई प्रयोजन हो ,वह खुद उसके होने में है चाहे वे आकाष में उड़ते पहाड़ ले जाते हनुमान हों चाहे साइकिल पर सवार हुसेन हों . साइकिल का जादू पहाड़ की भव्यता से कम नहीं है .हुसेन के लिए कुछ भी निषिध्द नहीं है . उनके यहां छोटे -बड़े,ऊंच -नीच , पांच सितारा होटल के गलियारे और निजामुद्दीन के गलियारे से उठता धुआं किसी के बीच कोई भेद कोई अन्तर नहीं रहता . उनके लिए आधुनिकता का मतलब जिन्दगी के प्रति सूफियाना द्दष्टि में सन्निहित है . उनके यहां अधुनिकता पश्चिम से आयातित होकर नहीं आती . माडर्न आर्ट का एक मजेदार पेचीदा पहलू यह है कि देखने वाला अपनी मर्जी और मिजाज में तस्वीर को ढालने का हक रखता है . एक लिहाज से माडर्न आर्ट का मिजाज अमीराना नहीं बल्कि डेमोक्रेटिक है . जैसे कि देखने में व्यक्तित्व षहाना हो. लकीरों का तनाव खुद्दारी का एलान करता हो और रंगों की षोखी आत्म सम्मान और स्वाभिमान से परिपूर्ण हो . डा॰ लोहिया से हुसेन साहब के नजदीकी ताल्लुकात थे . लोहिया जी हुसेन में आधुनिक कला का लोकतंत्र देखते थे ़हुसेन ने डा॰ लोहिया का पेन्सिल डॉट स्कैच बनाया था जो बहुत पसन्द किया गया और बहुत पापुलार हुआ .डा॰ लोहिया के कहने पर हुसेन ने रामायण में भारतीय लोक पक्ष को गहराई से मह्सूस किया और रामायण के प्रसंगों पर सैकड़ों चित्र बनाये . लोहिया के मित्र बदरीविशाल पित्ती जो साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संम्पादक थे का घ्रर रामायण के १५॰ चित्रों से भर दिया और यह् कार्य बिना किसी धन के लालच के किया . हुसेन पर सांप्रदायिक और व्यवसायिक होने का आरोप लगाने वालों को हुसेन के इस पक्ष को भी देखना चाहिए . हुसेन ने महाभारत के चित्रों की एक श्रंखला बनायी . उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर ,शरत चन्द्र ,गालिब . इक़बाल ,फैज के भी चित्र बनाये . उन्होंने मदर टरेसा का सुन्दर सा स्कैच उनके जीवनकाल में ही बनाया . उनका इन्दिरा जी के साथ एक बच्चे के साथ ममतामयी चित्र बनाया जो बहुत पंसन्द किया गया . इस तरह हुसेन की कला के आयाम और संन्दर्भ बहुत व्यापक थे . हुसेन साहब अधिक उनमुक्त , अकुंठित , निश्च्छल , अनासक्त , ऊर्जावान और प्रयोगशील व्यक्ति थे ,अपनी कला में भी और अपने जीवन में भी . वे एक अच्छे दोस्त और आजाद खयाल इंसान थे . भारत सारकार ने उन्हें और उनकी कला को भरपूर सम्मान दिया ़उन्हें ùश्री ,ùभूशण और ùविभुशण से नवाजा गया . वे राज्यसभा के सदस्य भी नामित हुए .मक़बूल फिदा हुसेन ऐसे पहले भारतीय कलाकार थे जिन्हें जनमानस में बड़ी जगह मिली और जिन्होंने देश दुनियां में ऐसी ख्याति अर्जित की जिसे अभूतपूर्व कहा जा सकता है. वे जहां भी बैठते वहां कुछ कुछ कर रहे होते थे . कई लोगों को यह बात ख्टकती भी थी कि हुसेन चित्रकार की एकान्त साधना की जगह उसको सार्वजनिक बनाने में क्यों तुले रहते हैं . हुसेन साहब का य्ाह मानना था कि कैनवास पर जब तक तैल रंगों से तस्वीर बनाने की विधि को सहज नहीं बनाया जायेगा , आधुनिक भारतीय समकालीन चित्रकला लोगों के बीच स्वीकृत नहीं पा सकेगी . कलाकार एकान्त में कैनवास पर कुछ अदभुत रच सकता है ,इस मिथक को वे तोड़ना चाहते थे . इसके बाबजूद वे रामकुमार ,तैयब मेहता, गायतोंडे जैसे एकान्त साधकों के गहरे प्रषंषक रहे हैं . घोड़ा उनका प्रिय विषय था . वे आटोग्राफ देते समय अक्सर घोड़ा बना कर आटोग्राफ देते . हुसेन साहब घोड़े के रंगरूप के बहुत प्रशंसक थे और अश्वगति के तो वे थे ही . हुसेन करुणा ,संवेदना और मानवीय जिजीविषा के प्रखर चित्रकार थे . हुसेन ने अपने जिन साथियों ( हुसेन, रजा, सूजा,गादे बाकरे और कृश्णाजीआरा ) के साथ प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप की स्थापना की थी उनका आधुनिक भारतीय चित्रकला के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान है . उन्होंने माधुरी दीक्षित की फिल्महम आप के हैं कौन६७ बार देखी . उन्होंने माधुरी पर गजगामिनी नाम से फिल्म भी बनायी .उन्होंने माधुरी की खुबसूरत पेन्टिंग भी बनायी जिस पर लिखा फिदा . वे तब्बू और अमृता राव के भी फैन रहे .उन्होंने तब्बू पर आधारितमिनाक्षी टेल आफ थ्री सिटीज भी बनाई .वे अभिनेत्री विद्या वालान से भी प्रभावित थे हुसेन की आत्मकथाहुसेन की कहानी: अपनी जवानीएक मषहूर और विवादस्पद चित्रकार की दिलचस्प किताब है .

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