Thursday 5 May, 2011

समय की आवाज



( रामाशंकर यादव विद्रोही के प्रति )

भगवान स्वरूप कटियार





अराजक सा दिखने वाला वह शख्स
चलता-फिरता बम है
जिस दिन फटेगा
पूरी दुनियां दहल जायेगी.

कितना यूरेनियम भरा है उसके भीतर
उसे खुद भी नही पता है.

उसके पत्थर जैसे कठोर हांथ
छेनी - हथौडी की तरह
दिन-रात चलते रह्ते है़
बेह्तर कल की तामीर के वास्ते.

उसके चेहरे पर उग आया है
अपने समय का बीहड़ बियावान.

अनवरत चलते रहने वाले
फटी बिवाइंयों वाले उसके पांव
किसी देवता से अधिक पवित्र हैं.

वह बीच चौराहे पर
सरेआम व्यवस्था को ललकारता है
पर व्यवस्था उसका कुछ नहीं
बिगाड पाती
तभी तो वह सोचता है
कि वह कितना टेरिबुल हो गया है.

तभी तो वह
बडे आत्मविश्वास के साथ कहता है
कि मशीहाई में उसका
कोई यकीन ही नहीं है
और ना मैं मानता हूं
कि कोई मुझ से बडा है.



वह ऊर्जा का भरापूरा पावर हाउस है
जिससे उर्जीकृत है
पूरी एक पीढी.

बच्चों जैसी उसकी मासूम आखों में
पूरा एक समुन्दर इळलाता है
और हृदय में भरी गहरी संवेदनाओं के साथ
जब वह हुंकारता है
तो समय भी ठहर कर सुनता है उसे
क्योंकि ना सिर्फ वह
अपने समय की आवाज है
बल्कि भविष्य का आगाज भी







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