Thursday 5 May, 2011

कार्ल मार्क्स और उनका चिन्तन


( ५ मई जन्म दिवस पर विषेश ) भगवान स्वरूप कटियार
मार्क्सवादी विचारधारा के अस्तित्व में आने के बाद दुनियां मार्क्सावादी तथा गैरमाक्सर्वादी दो धु्रवीय विचारधारा में विभाजित हो गयी या यों कि कहें कि पूंजीवादी और गैरपूंजीवादी यानी समाजवादी.दुनिया के समृध्द और विकसित देष पूंजीवादी खेमें में एकताबध्द हुए जिसके मुखिया अमेरिका और इंग्लैण्ड जैसे षक्ति सम्पन्न देष बने और तीसरी दुनिया के गरीब देषों का नेतृत्व तत्कालीन सोवियतसंघ यानी रूस ने संभाला जो मार्क्सवादी चिन्तन को हथियार बना कर अक्तूबर क्रान्ति के जरिये पूंजीवाद और सामन्तवाद के खिलाफ एक ताकत बन कर उभरा था.सोवियत संघ के विघटन के बाद भले ही यह कहा जाने लगा हो कि दुनिया एक धु्रवीय हो गयी है पर सच्चई तो यह कि वैचारिक रूप से दुनिया आज भी दो धु्रवीय ही है और जब तक पूंजीवाद है, दुनिया दो धु्रवीय ही रहेगी. भले ही पूंजीवाद किसी भी षक्ल में क्यों ना हो .लैटिन अमेरिकी देषों में वामपंथ की बढती लहर इस बात का ज्वलन्त सबूत है .गत दिनों आयी वैश्विक मन्दी ने उदारीकरण और भूमंडलीकरण की हवा निकाल कर रख दी और अन्ततः समाधान के लिए मार्क्सवाद की षरण जाना पडा और अर्थषस्त्रियों को मार्क्स की प्रसिध्द पुस्तक ”पूंजी“ के सफे पढने पढे. पूंजीवाद का जितना अच्छा अध्यय्न और विश्लेषण मार्क्स ने किया उतना और किसी ने अभी तक नहीं किया. मार्क्स ने उस नैतिक और सांस्कृतिक विध्वंस की ओर ध्यान दिलाया , पूंजीवाद जिसे अपने साथ लाता है. मार्क्स ने पूरे तर्कों के साथ बताया कि मनुश्य जब पहली बार शोषित वर्ग का सदस्य बनता है तो वह अपने मानवीय सारतत्व से वंचित हो जाता है और पुंजीवाद के अधीन वह अपने अन्दर समूची मानवता का विध्वंष होते देखता है. पूंजीवाद लालच और लालचियों के बीच लडी जाने वाली लडाई है जो संपूर्ण मानवजाति को अपने शिकंजे में जकड कर बाजार की अंधी ताकतों के रहमोंकरम पर छोड देती है. मनुश्य की मुक्ति के मुख्य आधार सृजनात्मक आत्मक्रियाषीलता को ,श्रम को और स्वयं मनुष्य को माल में तब्दील कर देता है. पूंजीवाद् मनुश्य को मनुश्य से अलग कर देता है .पूंजीवाद मनुश्यों के बीच सभी जेनुइन रिशतोंको तोड देता है और मनुष्यों के संसार को एक दूसरे के शत्रुओं के संसार में बदल् देता है।यह मनुश्य मनुश्य के बीच नंगे स्वार्थ , कठोर नगद भुगतान के अलावा रिष्ते का और कोई आधार नहीं छोडता.मानव- जीवन का हर पहलू खरीदने और बेचने की वस्तु बन जाता है.प्रेम, निश्ळा,ज्ञान, अंतरआत्मा,गुण आदि जो कभी संप्रेषित की जाती थीं लेकिन बदली नहीं जाती थीं,बेची खरीदी नहीं जाती थीं , सब बाजारू हो कर वणिज्य के क्षेत्र में प्रवेश कर जाती हैं. पूंजी सभी मानवीय और प्राकृतिक गुणों को बाजार में लाकर पराजित कर देती है. मार्क्स ने इस ओर खास तौर से ध्यान आकर्षित करते हुए आगाह किया कि हमारी शानदार संवेदनाओ के बदले पूंजीवाद सिर्फ अमूर्त संवेदना सम्पत्तिबोध को प्रस्तावित करता है जो मानवीय व्यक्तित्व का विध्वंश कर देती है, मनुष्य को लालची समाज की बीमारी से ग्रसित कर देती है.मनुष्य को उस असीम दरिद्रता में धकेला जाता है कि ताकि वह अपनी आन्तरिक संपत्ति को बाहरी दुनियां के हाथों सौंप सके. पूंजीवादी व्यवस्था में धनी व्यक्ति भी वास्त्विक जीवन से वंचित और अपनी अंतरआत्मा से अपंग दीन-हीन हो जाता है.जिसकी संपत्ति जितनी बडी होती है वह अंतरआत्मा के स्तर पर् उतना ही छोटा होता जाता है.उसने इस बात पर जोर दिया कि “निजी संम्पत्ति का अतिक्रमण ही सभी मानवीय संवेदनाओं और और गुणों की पूर्ण मुक्ति है़् .
जर्मनी के राइन प्रदेश प्रशा के त्रियेर नगर में ५मई १८१८ में एक यहूदी परिवार के वकील के घर में जन्में कार्ल मार्क्स ने अपने क्रान्तिकारी विचारों से दुनियां को सबसे अधिक प्रभावित किया.सामाजिक और आर्थिक चिन्तन के क्षेत्र में मार्क्स के बाद् एक युगान्तकारी परिवर्तन आना शुरू हुआ.चार्ल्स डार्विन और कार्ल मार्क्स ने दुनिया के बारे में सोचने ,समझने और देखने का नया नजरिया पेष किया. डार्विन ने मनुश्य की उत्पत्ति के विकास की वैज्ञानिक अवधारणा पेष की तो मार्क्स ने समाज की उत्पत्ति की ऐतिहासिक और वैज्ञानिक अवधारणा पेश की.मार्क्स ने प्रतिपादित किया कि “दुनियां का संम्पूर्ण इतिहास वर्ग संघर्श का इतिहास है. अपने मित्र और जीवन के सहयात्री फ्रेड्रिक एंगेल के साथ लिखा गयी मशहूर पुस्तक कम्युनिस्ट घोशणा-पत्र1890 के दशक में आश्चर्यजनक ढंग से बेस्ट सेलर साबित हुई और बीसवीं सदी के आरम्भ में बीबीसी ने “ उन्हें सर्वकालिक महान दार्शनिक “ चुना।उन्होंने कहा कि “ दार्शनिकों ने केवल दुनियां की व्याख्या की है ,पर सवाल इसे बदलने का है“ यहीं से मार्क्स एक दार्षनिक से क्रान्तिकारी विचारक में रूपान्तरित होने लगते हैं।मार्क्स के पिता हेनरिख मार्क्स पेशे से वकील और कुलीन यहूदी परिवार थे और उन पर फ्रांसीसी क्रान्ति का गहरा प्रभाव था।उन पर वाल्टेयर और रूसो का गहरा प्रभाव था और उन्होंने अपना धर्म बदल कर प्रोटेस्टेन्ट हो गये.कार्ल मार्क्स पर अपने पिता की गहरी छाप थी.उन्होंने लिखा है कि मेरे पिता का चरित्र निश्छल और निष्कपट था और कानून के क्षेत्र के प्रतिभावान हस्ती थे.मार्क्स की मां हेनिरिएटा हालैण्ड के एक घरेलू परिवार की साधारण महिला थीं.१८३॰ से १८३५ तक मार्क्स त्रिएर के जिम्नेजियम में पढे.इसी समय मार्क्स का वैचारिक विकास प्रारम्भ हो चुका था जिसकी झलक उनके द्वारा “व्यवसाय के चयन पर एक तरूण के विचार“ विशय पर लिखे गये निबन्ध से साफ झलकती है.उन पर उनके पिता के मित्र लुडविग वान का भी प्रभाव थे जिसके कारण षुरू में उन्होंने कवितएं , नाटक और उपन्यास भी लिखे.षेक्सपियर उनके प्रिय लेखक थे. जेनी वान वेस्टफालेन लुड्विग की ही बेटी थी जिनसे मार्क्स बचपन से बेहद प्यार करते थे और १८४३ में जेनी मार्क्स की जीवन संगनी बनी.मार्क्स को मार्क्स बनाने में उनकी पत्नी जेनी,उनके मित्र फ्रेड्रिक एंगेल और उनकी घरेलू सहायक हेलेन की अहम भूमिका थी. अगर कहा जाय कि मार्क्स इन्हीं तीनों अवयवों का विकसित मिश्रण थे तो अतिशयोक्ति न होगा.
.१८३५ में मार्क्स ने बोन विष्वविद्यालय के विधि संकाय में दाखिला लिया.मार्क्स की दर्षन और् इतिहास में गहरी रुचि थी पर वह सिर्फ अकादमिक नहीं थी.उन दिनों की बहषों में महान दार्षनिक हेगेल का गहरा प्रभाव था.हेगेल पर फ्रांसीसी क्रान्ति का गहरा असर था और उनका मानना था कि मानवीय सभ्यता के न्यायपूर्ण विकास के लिए नये युग का सूत्र्ापात है.लेकिन जब मार्क्स हेगेल के विचारों से परिचित हुए तब तक हेगेल पूर्णरूपेण यथास्थितिवादी बन गये थे और वे यह मानने लगे थे कि “ईश्वर ही चेतना का सर्वोच्च प्रतीक है“.मार्क्स के लिए समाज को वर्गों के आधार पर समझने की प्रक्रिया का प्रस्थान विन्दु था.कार्ल मार्क्स ने “दर्षन की दरिद्रता“.“कम्युनिस्ट घोषणा पत्र “ तथा तीन खंडों में बृहद पुस्तक “पूंजी“ के अतिरिक्त अनेक महत्व्पूर्ण पुस्तकें लिखी तथा अनेक् महत्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं का संपादन किया।मार्क्स द्वारा लिखित पूंजी को सर्वहारा की बाइबिल कहा जाता है। उन्होंने “दुनियां के मजदूरो एक हो“ का नारा बुलन्द करते हुए कम्युनिस्ट इन्तरनेशनल का गळन किया। कम्युनिस्ट इन्तरनेशनल के लिए काम करते हुए उनके स्वास्थ पर गहरा असर पडा.२दिसम्बर १८८१ को उनकी जीवन संगनी जेनी का निधन हुआ.इसके कुछ दिन बाद उनकी बडी बेटी का निधन हो गया.मार्क्स के कुछ बच्चे लंदन में बचपन ही मर गये थे.१४ मार्च १८८३ को मार्क्स काम करते हुए अपनी कुर्सी पर हमेषा के लिए चिरनिद्रा में सो गये.इस महान क्रान्तिकारी चिन्तक के निधन से विष्व सर्वहारा की अपूर्ण क्षति हुई.वह कहा करते थे कि “सिर्फ और सिर्फ मानवता और मानव कल्याण के लिए काम करो“.उन्होंने अपार कश्ट और तकलीफे सही ,निर्वासन और गरीबी के थपेडे सहे पर उनके पांव नहीं डगमगाये . उनका अमर वाक्य “यह मनुश्य की चेतना नहीं होती जो उसके अस्तित्व का निर्धारण करती है,बल्कि उसका सामाजिक अस्तित्व होता है जो उसकी चेतना को निर्धारित करता है“ विश्व सर्वहारा की वैचारिक चेतना का सूत्र बन गया. आज कार्पोरेट पूंजीवाद ,उदारीकरण और भूमंडलीकरण के जिन धारदार हथियारों के साथ हमारे सामने खडा है ,उससे लडने का एक ही हथियार हमारे सामने है कार्ल मार्क्स का सार्वभौमिक चिंतन यानी मार्क्सवाद.मार्क्सवाद की प्रासांगिकता आज पहले से अधिक है.

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