Monday 21 February, 2011

एक मित्र की याद में





भगवान स्वरूप कटियार्
तुम शरारती थे मित्र
और चालाकी तो तुम में
कूट कूट कर भरी थी
तुम्हारी शैतानियाँ,चालाकियां
और शरारतों की यादें ही तो
मुझे परेशान करती हैं
सच कहूं मित्र
मनुष्य एक तिनका मात्र है
कब कोई अंधड किसको कहां
पटक दे कौन जानता है भला
कई बार हम चाह कर भी
अपनी भूमिकाए नहीं चुन पाते
हालात तय करते हैं सब कुछ्
वही हम दोनो के साथ हुआ .

चालाकी को तुमने अपना पेशा बनाया
और करते रहे एक से एक बढ कर
बडी बडी शरारतें पूरी जिन्दगी
बाबजूद साळ पहुंचने तक
सच कहूं तुम ना जवान हुए
और न बूढे
बच्चे ही बने रहे ता उम्र .

तुम ना परेशान हुए ना डरे
बल्कि तुमने ही लोगों को परेशान किया
और डराया भी .
और एक मैं था कि बडे ओहदे पर
होते हुए भी पूरी जिन्दगी परेशान और
डरता ही रहा अपने आसपास के अंधेरों से .

किन्तु तुम्हारी आकस्मिक मृत्यु के बाद
शोक के गहन अंधेरे में डूब कर
महशूश कर रहा हूं तुम्हारे परिवार का अथाह दुख
जो तुम्हारी छोटी बडी शरारतों से ही उपजा है
तुम्हारी गुजरी हुई पूरी जिन्दगी
एक फैली हुई नदी है
जिसमें रेत ही रेत है
कहीं एक बूंद् पानी नहीं है
सोचो एक सूखी नदी का क्या मतलब
सिर्फ एक रेत का बबन्डर्
जिसमें ना नावें, ना मछलइयां और ना परिंदे ही
बच्चे किससे खेलें गे भला .

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