Monday 14 February, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ जनसंघर्ष जरुरी




भगवान स्वरूप कटियार्

इतिहास गवाह है कि हर लडाई जनता को स्वंयं लडनी पड्ती है. आजादी की लडाई
की तरह यह लडाई हमें स्वयं लडनी होगी भ्रष्ट और दमनकारी सत्ता के खिलाफ है.यमन,ट्यूनीशिया तथा मिस्र में जो कुछ भी हो रहा है वह सब भ्रष्ट और दमनकारी राज्य सत्ता के खिलाफ जनता का एक परिवर्तनकामी संगळित आक्रोश है. भारत के कमोबेश सभी राजनैतिक दल भ्रष्टाचार पोषक हैं,इसीलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका रुख ढुलमुल है.कई राजनैतिक दल जैसे सपा,बसपा,राजद और रालोद आदि तो इस मुद्दे पर चुप्पी साध कर मानो यह कहना चाहते हैं कि लोकतंत्र और भ्रष्टाचार का चोलीदामन का साथ है इसिलिए दोनो साथ साथ चलते हैं.भ्रष्टाचार को विकास के लिए भी अनिवार्य शर्त के रूप मे स्वीकार कर लिया गया है. अगर हम इतिहास में झांक कर देखें तो कोई भी राजतांत्रिक व्यवस्था मौजूदा लोकतन्त्र की तरह भ्रष्ट नहीं रही।उनकी भी अपनी मर्यादायें थीं पर लोकतंत्र के चुने हुए प्रतिनिधियों ने तो लोकतंत्र की मर्यादाओं की सारी हदें पार कर दीं.विनायकसेन को गरीब आदिवासियों की सेव के लिए आजीवन कारावास दिया जाता है जबकि दो-दो बीघे के कास्तकार लालू,मुलायम,मायावती,पासवान आदि अरबो रुपयों के काले धन के मालिक देशभक्त बने हुए संसद,विधान सभाओं सरकार के मंत्रिमंडलों में छुट्टा घूम रहे हैं.भ्रष्ट राज्यसत्ता और भ्रष्ट नौकरशाही संविधान और कानून को ताक पर रख कर लगभग रोज ही बडे-बडे वित्तीय घोटाले और घपले करती है और देश की आन्दोलित जनता को कानून और मर्यादा की सीख देती है.केन्द्र सरकार ओर प्रादेश सरकारों को दुनिया भर में फैले जनाक्रोश के विस्फोट से सबक लेना चाहिए क्योंकि हिंसात्मक आन्दोलान जनता की वेवषी होती है।इसके पहले देश की निहत्थी किन्तु क्रन्तिकारी जनता अपने हकों की निर्णाय्ाक लडाई के लिए मैदान में उतरे सरकारों को अपना रुख और इरादे बद्ल लेना चाहिए ताकि हिन्दुस्तान में काहिरा का जन्म होने पाये। विभिन्न स्रोतों और रिपोर्टों के अनुसार 70लाख करोड रुपयों का काला धन विदेशों में जमां है.यह इतनी बड़ी राशि है कि साधारण आदमी इसका हिसाब नही लग सकता है.पर इसे यों समझा जा सकता है कि यदि इस काले धन को देश के गरीबों में बांट दिया जाय तो एक ही रात में 70करोड गरीब लखपति बन जायें गे.जरा सोचिये जो आदमी 20रुपये रोज पर गुजारा कर रहा है उसके हांथ में यदि एक लाख रुपये आजाते हैं तो वह क्या नहीं कर सकता है.फिर ना तो कोई आत्महत्या करेगा.जरा सोचिए कि अगर विदेशों में जमा १७० लाख करोड रुपया देश में वपस लौट आये उसे देश के उत्पादन क्षेत्र में निवेश कर रोजगार स्रजन किया जाय तो बेरोजगारी भी दूर होगी और उत्पादकता बढने के कारण अर्थ व्यवस्था भी सुद्दढ होगी. हमारा पैसा यानी देष का काला धन जो टैक्सचोरी और अपराधिक काले कारनामों से कमाया गया है सिर्फ स्विसबैंक ही नहीं जमा है बल्कि दुनिया के ७० देशों के बैंकों में जमां है.ये देश यद्यपि दिल्ली से भी छोटे हैं पर दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र् को बंधक बना रखा है.इन छोट-छोटे देशों की अर्थ व्यव्स्था इसी काले धन से चलती है.विश्व समुदाय को आज यह सोचने की परम आवश्यकता है कि आर्थिक अपराधों के इन अन्तरर्राश्टीय अड्डों को खत्म किये बगैर ना तो हम आतंकवाद से छुटकारा सकते हैं और न ही भूख तथा अंतरराश्टीय तनावे।लिष्टेंसटाइन,मोनेको,दुबई,वर्जिन आईलैण्ड तथा केमेन आईलैण्ड में अरबों खरबों का भारतीय काला धन जमा है.पूरी दुनिया काछुपा हुआ काला धन 12हजार अरब डालर आंका गया है. अकेले स्विटजरलैंण्ड में जमा काले धन में सबसे ज्याद भारत का है.रूस के 470 अरब,चीन के 96 अरब, यूक्रेन 100 अरब और भारत के 1456 अरब दालर जमा है.यानी सब मिला कर भी भारत के बराबर नहीं है.विश्व की कुल पूंजी का 57 प्रतिषत सिर्फ एक प्रतिषत लोगों के पास है।यह काला धन , तस्करी रिश्वत,लूट,चोरी,दलाली और धोखाधडी से कमाया हुआ होता है.टैक्स चोरी के लिये व्यापार का धन भी यहां जमां होता है.पर काले धन की संरक्षक ये बैंके सम्पूर्ण काले धन को कर चोरी(कर बचत) का पैसा मानतीं हैं जिसे उनका कानून अपराध नहीं मानता है.भारत सरकार भी कर चोरी को षायद अपराध नहिं मानती इसलिये उसने स्विटजरलैण्ड के उस लचर पचर समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये जो सिर्फ कर चोरी के मामले में मदद करने का आश्वासन देता है.इस समझौते का नाम दोहरे कराधान से बचाव का समझौता है.यानी कर चोरी को पूर्ण संरक्षण,कर् चोरों को दो दो बार टैक्स न भरना पडे इसकी चिंता भारत सरकार को है.ऐसी सरकारें भला काले धन वालों को क्यों बेनकाब कर दंडित करे गी.जर्मनी से हुई संधि में भारत सरकार ने कर चोरों के नाम चोरों के नाम छुपाने का वादा किया है .सरकार यह मिलीभगत साफ साबित करती है कि इस देषद्रोह के गोरखधंधे में देश के सफेदपोश राजनेता और नौकरषाह षामिल हैं.उच्चतम न्यायालय का कहना एकदम सही है कि सरकार अंतरराश्ट्रीय संधियों कि आड में इन काले धन के अपराधियों को बचाना चाहती है. आखिर इस देष को संसद चलाये गी या अंतरराश्ट्रीय सन्धियां. अपने राश्ट्रीय हितों के लिए कमजोर राश्ट्र भी युध्द तक की घोशणा कर देते हैं और हम हैं कि दोहरा कराधान समझौता तोडने में डर रहे हैं.जर्मनी ने 26 नाम दिये हैं ,उसके बाद वह नाम नहीं देगा,मत देने दे. अगर भारत सरकार देष के अन्दर ही काले धन के विरुध्द शख्ती वरते तो काले धन के खातेदारों के नाम अपनेआप पता चल जायेंगे. अगर अन्तरराष्ट्रीय दबाव की परवाह किये बगैर हमारी संसद परमाणु हर्जाना कानून पारित कर सक्ती है तो कले धन वापसी कळोर कानून क्यों नहीं बना सकती.भारत सरकार का कुल सालाना कर संग्रह 7-8लाख हजार रुपये का है,जबकि इसका 10-12गुना विदेशी बैंकों में पडा है. अगर यह धन वापस आ जाय तो देष के नागरिकों को दस साल तक टैक्स ही ना देना पडे. अगर सरकार यह धन वापस नही लाती तो जनता को टैक्स देना बन्द कर देना चाहिए.भरत सरकार को उन देशों से राजनयिक सम्बंध खत्म करने पर भी सोचना चाहिए जो काले धन खातेदारों के नाम बताने से कतरा रहे हैं.संयुक्त्राष्ट्रसंघ ने 2003 में काले धन संम्बंधी जो भ्रष्टाचार विरोधी प्रस्ताव पारित किया था जिस पर भारत समेत 140देषों के हस्ताक्षर हैं. काले धन के अभियान में ये सभी देष भारत के साथ खडे होंगे बषर्ते भारत खुद भी हिम्मत दिखाये.यही काला धन हमारे चुनावों मेम इस्तेमाल होता है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को खोखला करता है.इसी पैसे के बल पर दुनिया के तानाषाह अपना सीना ताने रहते हैं तथा यही धन आतंकवाद और तस्करी जैसे अपराधिक कृत्यों में इस्तेमाल होता है.यह कैसी बिडम्बना है कि लोक्तांत्रिक मूल्यों की दुहाई देने वाली पष्चिमी दुनियां आर्थिक अपराधियों की ऐषगाह बनी हुई है. अगर अपने देष का काला धन वापस ले सकता है तो फिर दुनियां की महा आार्थिक षक्ति और सबसे बडा लोकतंत्र इतना लाचार क्यों है.पूंजी पलायन के विरुध्द 2003 में भारत सरकार ने काानून बनाया और 2005 में लागू भी कर दिया गया फिर भी सरकार काले धन के मामले में संकोच क्यों करती है. अगर विकीलीक्स ने खातेदारों के नाम खुलासा कर दिये तो हमारे लिये यह षर्म की बात होगी. अब समय आ गया है जब एकबध्द हो हम देषवासियों को देशद्रोहियों के विरुध्द एक अहिंसक जनयुध्द् षुरू करना चाहिए ताकि देष को बचाया जा सके.देष ब्चे गा तभी हम बचेगें.काले धन की संरक्षक ये विदेशी बैंकें काले धन कमाने वालों के लिए टैक्स हैवन्स हैं.ये टैक्स हैवन्स सिर्फ स्विटजरलैण्ड ही नही बल्कि छोटे-छोटे कैरबियाई देश केमैन आईलैण्ड,जिब्राल्टर चैनल आइलैण्ड,ब्रिटिश वर्जिन आईलैण्ड, मोनाको,लक्जमवर्ग,लिष्टेन्स्टइन एवं दुबई आदि हैं.ग्लोबल फैनेशियल इंटेग्रिटी के मुताबिक 1948 से2008 के बीच काले धन वालों ने भारत को 462 अरब डालर का चूना लगाया.जर्मनी के हेनिरिश कीबर के पास पूरी दुनिया के 1400 काले धन के खातेदारों की सूची है.कीबर आस्ट्रेलिया में कंही अंडरग्राउण्ड् है और इन्टरपोल को उसकी तलाष है,ट्रांसपैरेंसी इंटरनेषनल के अनुसार अब तक 115 ट्रिलियन डालर अर्थात 518 लाख करोड रुपये का काला धन विदेशों में जमा है .तमाम आयोगों और संसद की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 100लख करोड रुपये के काले धन की व्यवस्था देश में चल रही है. अमेरिका ने काले धन के खातों का पता लगा कर अपना पैसा वापस ले लिया फिर भारत क्यों झिझक रहा है. यह देश और समज से जुडा राजनैतिक और भावात्मक मुद्दा है.सरकार अगर इस मुद्दे पर गम्भीर और द्दढ नहीं दिखती तो लगातार संदेह गहराता जायेगा.इस मुद्दे पर जनता सरकार के साथ है नही तो जनता अपनी लडाई लडना बखूबी जानती है.

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