Saturday 19 February, 2011

मिस्र में परिवर्तन के भारतीय सन्दर्भ




भगवान स्वरूप कटियार

उत्तरी अफ्रीकी देशों में जो कुछ भी हाल में घटित हुआ या घटित हो रहा है वह चौकाने वाला भी है और सावधान करने वाला भी. आष्चर्य इस बात का है कि दुनियां का सबसे बडा लोकतंत्र भारत जैसा देष आज भी इन घट्नाक्रमों से कोई सबक लेने को तैयार नहीं है. आज यहां राजनेताओं को जनभावनाओं की ना तो कोई परवाह है और ना उसके प्रति को आदरभाव ही दिखता है . भारत की भी कमोबेश स्थिति वैसी ही है कि पूरा निजाम उलट दिया जाय. बिडम्बना यह है कि यहां चुने हुए तानाशाह हैं। भारत के राजनैतिक दलों में आन्तरिक लोकतंत्र नहीं जबकि लोकतंत्र की दुहाई देकर वे धनबल् और बाहुबल् के बूते संसद और विधान सभाओं के लिए चुने जाते हैं।काले धन की वापसी और की मुखालाफत में कोई भी दल खुल कर मैदान में नहीं आरहा है और जो दल थोडा बहुत बोल रहे है वे खुद भ्रष्टाचार में आकंळ डूबे हुए हैं इसलिए उनकी विश्वसनीयता ही जनता में नहीं रही.हमने अपने पडोसी देष नेपाल से सबक नहीं लिया जहां की जनता सामन्तवादी राजशाही के विरुध्द दस साल जंग लड्ती रही. हम उसे चीन की साजिष कहते रहे जबकि वह षुध्दरूप से न्याय,मुक्ति और मानवाधिकारों का जनयुध्द था जिसने राजशाही के निजाम को बदल दिया.हमारा नजरिया आज भी नेपाल के प्रति औपनिवेशिक है और इसीलिए भारत की हिन्दुत्ववादी ताकतों को नेपाल का बद्लाव हजम नहीं हो रहा है.भारत में आजादी के बाद 60-62 सालो़ मे़ं जो कुछ हुआ है वह अत्यन्त दुखद ,शर्मनाक और निन्द्नीय है.पूरी संवैधानिक व्यवस्था का अपराधीकरण हो गया.इसलिये भ्रष्टाचार के विरुध्द जैसै ही आवाज उळती है सब तिलमिलाने लगते हैं और गिरोह्बन्दी करने लगते हैं.उत्तर प्रदेश निधान सभा में विधायक निधि समाप्त करने के लिए लोकायुक्त की सिफारिश के विरुध्द सत्तापक्ष और विपक्ष की गिरोहबन्दी भ्रष्टाचार के पक्ष में राजनेताओं की मंशा को उजागर करती है.बिहार में नीतीश विधायकनिधि समाप्त कर देते हैं तब भाजपा विरोध नहीं करती और उत्तर प्रदेश में भजपा के विधायक् विधायकनिधि समाप्त करने का खुल्लमखुल्ला विरोध कर रहे हैं ,यह कैसा दोहरा चरित्र है,बिहार में सत्ता ना जाय और उत्तर प्रदेश में विधायकनिधि ना जाय.
उत्तर प्रदेश सरकार भी विधायकनिधि समाप्त करने के प्रति बहुत गम्भीर नहीं है.सरकार पूर्ण बहुमत में है.बिहार की नीतीष सरकार की तरह वह किसी दल पर निर्भर नहीं है.यदि उत्तर प्रदेश सरकार विधायकनिधि में ब्याप्त घोर भ्रष्टाचार के कारण इसे समाप्त करना चाहती है तो सिर्फ मजबूत इच्छाशक्ति की जरुरत है क्योंकि संगळित भ्रष्टाचार उत्तर प्रदेश सरकार का जगजाहिर है. अगर प्रदेश सरकार नगरनिगमों के मेयरों को सीधे चुने जाने से सम्बंधित कानून विधान सभा में पारित करा सकती है तो फिर विधायक् निधि समाप्त करने सम्बन्धी कानून पारित करने में क्या कळिनाई थी. सवाल सिर्फ साफ् मंशा और पक्के इरादे का
है जिसका प्रदर्शन सरकार ने मेयर वाले मुद्दे में किया.इस सम्पूर्ण विमर्ष से एक बात साफ निकल कर आती है कि इस देष को अब ना मुलायम चाहिए ना मायावती,ना पाशावान.ना लालू ना मोदी और चाहिए तो अब मनमोहन भी नहीं जो बेईमानी की पहरेदारी ईमानदारी से कर रहे हैं।पर हमें एक ऐसा नीतीश चाहिए जो भाजपा जैसी सांम्प्रदायिक पार्टी से ताल्लुक ना रखता हो साथ ही बिहार में भूमिस्वामित्व के जनोन्मुख कानून भूमाफियों के बगैर दबाव के बना सके.आशय साफ है कि इस देष को भ्रश्टाचार- अपराधमुक्त न्यायाधारित ऐसी व्यवस्था चाहिए जहां हर कोई पूर्ण आत्मसम्मान मानवीय गरिमा से जी सके और जहंा किसी की तरह लाचारी और बेवशी ना हो. इस पाक इरादे के लिये जनता मिस्र और ट्यूनीशिया की तरह कैसे संगळित हो अंहिसक क्रांन्ति करे.यहां कळिनाई इस बात की है कि हम सब संगळित भारतीय नहीं हैं.हम धर्म और जातियों में विभाजित हैं,हम ऊंच- नीच और गरीब अमीर में बटे हैं.पर हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमने इसी रूप् में संगळित होकर ब्रिटिश साम्राज्य को ढ्हा दिया था.हालात खुदबखुद अपना रास्ता तलाश लेते हैं.उसी वक़्त का इंतजार इस देश की जनता को भी है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमने भी इसी तरह की अहिंसक लडाई 25 जून 1975 को लोकनायक जय्ाप्रकाष नारायण के नेतृत्व में लडी थी और एक पुख्ता निजाम को बदल दिया था.पर जो लोग पलट कर आये वे उनसे भी घटिया साबित हुए.डा़ अम्बेडकर का कथन बार बार याद आता है कि यह देष अपने आन्तरिक अन्तरविरोधों के कारण पतनषील हो जयेगा.कैसी बिडम्बना है कि गान्धीवादी गान्धी के ना हुए, अम्बेडकर्वादी अम्बेडकर के ना हुए.लोहियावादी लोहिया के ना हुए और जयप्रकाष के चेलों ने तो हद ही कर दी.
मिस्र में इस जन विद्रोह में अनेक विलक्षण तथ्य सामने आये जैसे कि पहला तो यह भ्रम टूटा कि इस्लामी देषों में जमूहरियत, आजादी और इंसानी हुकूकों और हकों के लिए इंक़लाब नही हो सकता. मिस्र की घट्ना सही मायने में लोकतंात्रिक चेतना का स्वतःस्फूर्त विस्फोट है जिसे वहां के नौजवानो ने अंजाम दिया. इसके लिए वे किसी नेतृत्व के मुहताज नही हुए.उन्होंने ना सिर्फ अपने को संगळित और अनुषासित रखा बल्कि लडाई को कमजोर नहीं होने दिया. अराजकता और तोडफोड से दूर पूरी तरह अंहिसक रहे और तभी वे अपने देष की जनता का विष्वास और भरोसा जीत कर उसे अपने पक्ष में खडा कर सके. यह एक बेहद मुष्किल काम था जो उन्होंने कर दिखाया. इतिहास गवाह है कि इंक़लाब हमेषा नौजवान ही लाया है. मिस्र में यह सबसे मुष्किल घडी है कि क्रान्तियां अक्सर फिसल जातीं हैं या फिर गलत ताकतें इसका नाजायज फायदा भी उळाती हैं. नौजवानों की जिम्मेदारी इस इंक़लाब की पहरेदारी और सही दिषा देने की भी है.
यह इसी वर्श 25 जनवरी से एक हफ्ता पहले की बात है कि मिस्र के चार नौजवानों ने भूख.बेकारी, जिल्लत से तंग आकर आत्मदाह कर लिया था .वे मरने का कोई और तरीका भी चुन सकते थे.जैसे वे जहर खाकर या नील,स्वेज,भूमध्यसागर में डूब कर मरने का रास्ता भी चुन सकते थे.पर उन्हे सिर्फ मरना भर नहीं था,यह मरण नहीं आत्मोत्सर्ग था एक निरंकुष सत्ता के विरुध्द जिसमें मनुश्योचित् गरिमा के साथ जीना संभव नहीं रह गया था. आत्मदाह की इस आग ने सबसे पहले 26 वर्शीय एक युवती अस्मा महफूज को स्पर्श किया.वह इस घटना से बेहद उद्वेलित हुई और् उसने फेसबुक पर लिखा कि वह वतन के अमनचैन और आज़ादी के लिए इस जालिम सत्ता को ललकारने अकेली तहरीर चौक जा रही है जिसे मेरे साथ आना हो आये, वह सिर्फ आधा घंटे में तहरीर चौक पहुंच् रही है. अस्मा ने वहां पहुंच कर सरकार के खिलाफ नारे लगाना षुरू किया.देखते देखते वहां भीड आना षुरू हो गयी. पुलिस वा भी आये और उसे एक इमारत में ले गये और उससे पूंछा कि यह् सब क्यों कर रही हो अस्मां का जबाब था कि वह यह सब अपने लोगों की आजादी और बेहतर जीवन के लिए कर रही है.उसने कहा कि वह इसके हश्र्से भी वाकिफ है. पुलिस वालों ने कहा हम इस सरकार से त्रस्त हैं.भीड ने अस्मा को पुलिस द्वार इमारत में ले जाने से रोक लिया. इंक़लाब का जन्म हो चुका था.25 जनवरी को काहिरा समेत सभी मिस्रवासियों को तहरीर चौक पहुचने की अपील की गयी. लाखों की भीड तहरीर चौक दो हफ्ते तक प्रदर्शन और नारेबाजी करती रही जिसके फलस्वरूप ब्यवस्था में कुछ फेरबदल भी किये गये पर जनता को मिस्र के तानाषाह हुस्नी मुबारक को कुर्सी से हटाये बगैर चैन नहीं था और अन्ततः वह हो के रहा और मुबारक को हटना पडा. मिस्र की सेना ने तहरीर चौक पर अपने लोगों पर बल प्रयोग से इनकार कर दिया. मुबारक के गुन्डे जनता के खिलाफ आाये तो मात खानी पडी. कुल मिलाकर लोकतंत्र के इस युग में दुनिया भर के लोगों के मन में यह बात साफ हो गयी है कि जो सरकार लोकतांत्रिक नहीं वह वैध भी नहीं है. पर भारत के सन्दर्भ में तो चुनी हुई वैध सरकारें तानाषाह से बदतर अवैध कार्य कर रही है. वास्तव में निरंकुषता केवल एकतंत्रीय षासन या सर्वसत्तावाद का प्रतिफल नहीं है.बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी बखूबी उभर सकता है.भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में तो यह साफ सााफ झलक रहा है. स्वतंत्रता मनुश्य मात्र की प्रथम और अन्तिम आवष्यकता है जिसकी गारंटी सिर्फ लोकतंत्र देता है.लोकतंत्र हर किसी की जरूरत है तो अरब या मिस्रवासियों की क्यों नहीं हो सकती है.पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के हिमायतियों इस बात के लिए भी सावधान रहना होगा कि लोकतांत्रिक षसन का कहीं दुरुपयोग ना हो जैसा कि भारत में पग पग पर पल पल में हो रहा है. मिस्र में जो कुछ हुआ या अन्य देषों जो कुछ हो रहा है उसका फायदा अरब की धार्मिक सत्ताएं भी उळाना चाहेंगी जबकि तहरीर चौक पर मुसलमान और ईसाई साथ साथ लडाई लड रहे हैं. रोटी आजाादी, नागरिक अधिकार उनकी साझ जरूरत है.इजराइल और इस्लाम की दुहाई देकर मुस्लिम तानाशाह बहुत दिनों तक बहला या मूर्ख नहीं बना सकते हैं.
जिस दिन हुस्नी मुबारक के जाने पर मिस्र में जष्न मना रहा था उसी दिन् अल्जीरिया की राजधानी में एक मई चौक् पर एक बडी तादात में वहां के नागरिक अपने देष के राष्ट्रपति अब्दुल अजीज के इस्तीफे की मांग कर रहे थे.इसी तरह बारह फरवरी को यमन की राजधानी माना में भी नागरिकों एक बडी तादात एकत्र हो कर राश्ट्रपति के इस्तीफे की मांग की. इंक़लाब की जो लपटें ट्यूनीषिया से उळीं वे पूरे अरब में फैल रहीं हैं.इजराइल और अमेरिका की चिन्तायें बढ रहीं हैं. एक अरब देष में पहली बार बगैर किसी विदेशी या सेना की मदद के केवल जन प्रतिरोध के बल पर एक तानाशाह निजाम का खात्मा किया है. इतिहासकारों को इंक़लाब के आगाज का अनुमान लगाना मुश्किल होता है.लेकिन अरब जगत में जो व्यापक विस्फोट हुआ है उसमें किसी अनुमान की गुंजाइश नहीं है. भारत का संसदीय लोकतंत्र पूरी तरह पतित और पथभ्रष्ट हो चुका है.संसद और विधान सभाओं में अपराधी और माफिया चुन कर रहे हैं.संासद निधि और काले धन के खिलाफ ज्यादतर दल चुप्पी साधे हुए .भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को लोकतंत्र की अपरिहार्य षर्त के रूप में स्वीकृत सा हो गया है.यह स्थिति अत्यन्त दयानीय और खतरनाक है. इसके पहले देश की जनता किसी इंक़लाबी मोड पर पहुंचे भारतीय लोकतंत्र संचालकों को जन भावनाओं और जनांकांक्षाओं को समझ लेना चाहिए.

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