आतंकवाद का
अर्थशास्त्र
भगवान स्वरूप कटियार
दुनियां आज जिन दो गम्भीर संकटों से जूझ रही
है वे हैं आतंकवाद और जलवायु संकट | ये दोनों संकट अमेरिका जैसे विकसित देशों की वर्चस्ववादी
और मुनाफे और लालच की प्रव्रत्ति ने पैदा किये हैं जिससे सम्पूर्ण मानव जाति और
पृथ्वी के विनाश का खतरा पैदा हो गया है |दुःख की बात यह है कि पेरिस में हुए
बर्बर आतंकी हमले के बावजूद दुनियां के अमीर देशों के राष्ट्राध्यक्ष न तो आतंकवाद
के कारणों के मूल में जा रहे हैं और न ही जलवायु संकट के मूल में | जबकि यह समय है
कि हम राष्ट्रगत स्वार्थों से ऊपर उठ कर पृथ्वी और सम्पूर्ण मानवजाति को बचाने की
सोचें वरना हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा |दुनियां में लालच और मुनाफे की
अर्थव्यवस्था ने ही ये दोनों संकट पैदा किये हैं |इन दोनों गम्भीर संकटों के पीछे
है कार्पोरेट पूंजी जिसका सिर्फ और और सिर्फ उद्देश्य है मुनाफा और पूरी पृथ्वी पर
बिना रोक टोक एकछत्र राज | आज के दौर में
यह कार्पोरेट पूंजी ही दुनियाँ भर की राज्य व्यवस्थाएं संचालित कर रही है |
इतना ही नहीं यह आवारा कार्पोरेट पूंजी युध्द भी पैदा करती है ताकि हथियारों का
कारोबार फले-फूले |यह अवारा पूंजी मादक पदार्थों का उत्पादन कर नशे का कारोबार
फैला कर समाज को बीमार भी करती है|जिस दुनियाँ में हम रह रहे हैं उसकी दिशा तय
करते हैं दुनियाँ के पांच बड़े विकसित देश जिनके नाम हैं अमेरिका,फ़्रांस,जर्मनी,रूस,चीन
और इंग्लैण्ड | हैरत अंगेज बात यह है ये देश हथियारों का जखीरा पैदा करते हैं और
गरीब अविकसित देशों को बेंच कर अकूत मुनाफा कमाते हैं और गरीब देशों को आपस में
लड़ाते हैं|हथियार उत्पादक ये देश कभी नहीं चाहते कि यह दुनिया युध्द और आतंक से
मुक्त हो ताकि उनका हथियार कारोबार फलता –फूलता रहे | हथियार कारोबार के इस मनुष्य
विरोधी काम में अमेरिका की मार्टिन लौकहीड कंपनी जैसी दुनिया की सौ बड़ी कंपनिया लगी हुई हैं जो
मनुष्य उसकी रची सम्पूर्ण कायनात को ख़त्म कर देने की साजिश रच रहीं हैं | इस कारोबार
में वैश्विक स्तर पर १.५ ट्रिलियन डालर की
पूंजी लगी है जो विश्व जी डी पी का २.७ फीसदी है | हथियार उत्पादक ये दबंग देश चिल्लाते तब है जब इन हथियारों का निशाना ये खुद बनने लगते हैं |
सीरिया बरबाद हो ,इराक़ बरबाद हो, लीबिया बरबाद हो ,हिंदुस्तान –पाकिस्तान लड़ें तो
इन हथियार उत्पादक दुनियाँ के दबंग देशों को कोई प्रोब्लम नहीं है बल्कि उसमें तो
अमेरिका जैसा देश बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता है |पर कोई उन्हें आंख न दिखाये |पर हथियार
थमाने के बाद तो च्वाइस उसकी है जिसके हाँथ में हथियार है कि वह निशाना किसे बनाये
|अराजकता और वर्चस्व की संस्कृति किसी नियम कानून से नहीं चलती है वह चलती है सनक
और दुनियाँ को हथियाने की महत्वाकांक्षा से |इन हथियारों से ५ लाख निर्दोष नागरिक
प्रति वर्ष मारे जाते हैं यानि १५०० नागरिक प्रति दिन यह है हमारी आधुनिक सभ्यता
का क्रूरतम चेहरा | इतना ही नहीं लाखों लोग बेघर होकर शरणार्थी शिविरों में जाने
को मजबूर होते हैं और देशों के आधारभूत ढांचे सडक ,पुल, स्कूल ,अस्पताल ,खेत –खलियान
निस्तनाबुत हो जाते हैं जिन्हें खड़ा करने में देश का अकूत श्रम ,धन और समय लगा
होता है |
आंकडे बताते हैं कि हथियार उत्पादन का सबसे
बड़ा सरगना अमेरिका है जो कुल हथियारों का ३५ फीसदी पैदा करता है |इसके बाद रूस जो
१५ फीसदी पैदा करता है |इसके बाद जर्मनी जो ७.५फीसदी,इंग्लैण्ड ६.५ फीसदी और
फ़्रांस ४ फीसदी हथियार पैदा करते हैं |मजाक की बात यह है की ये सभी देश संयुक्त
राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद् के सदस्य हैं |कैसी बिडम्बना है दुनियाँ की
सुरक्षा का ठेका लेने वालों से ही यह दुनियाँ असुरक्षित है |इन देशों में १२ अरब
बुलेट्स,८७५ अरब गन्स और 0८ अरब लाईट वैपन बनते है |हथियारों के इस जखीरे को जाहिर
है हथियार उत्पादक देश अपने लिए तो पैदा कर नहीं रहे हैं पर इनका उपभोग तो होना ही
है तो जाहिर है की गरीब और अविकसित देशों की बर्बादी के लिए इनका इस्तेमाल होता है
|हथियारों की तिजारत का अर्थशास्त्र और उसकी राजनीति समझे बगैर न तो हम आतंकवाद से
निपट सकते हैं और न ही विश्व शान्ति की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं | अब जरा देखें
कि जी -20 के गठन के मनसूबे क्या हैं ?इसका गठन जब हुआ जब दुनियाँ मंदी के दौर से गुजर
रही थी | मंदी से जूझ रहे विकसित देश जिनकी दुनियाँ में चौधराहट कायम है सोच रहे
थे कि चीन और भारत के विशाल बाजारों के सहारे वे मंदी से उबर सकते हैं | इस संगठन
के देशों में दुनियाँ की दो तिहाई आबादी रहती है और दुनिया की ८५ फीसदी
अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं |इसमें दुनियाँ के बड़े विकसित देश और बड़े
विकासशील देश भी शामिल हैं | पर अमेरिका और पश्चिमी देशों के पिछलग्गू बन कर तो हम
उनका ही हित साधें गे | ब्रिक्स जैसे संगठन जो तीसरी दुनियाँ के मुल्कों का
प्रतिनिधित्व करता है एक वैकल्पिक मंच के रूप में इन चौधरी देशों की मुखालफत कर
सकते हैं जो आतंकवाद के बढ़ावे के लिए ज़िम्मेदार हैं | इसी तरह जलवायु संकट के लिए
भी यही विकसित देश ज़िम्मेदार हैं जो सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं | अगर २९
नवम्बर को पेरिस में होने वाले जलवायु सम्मलेन में किसी कारगर नतीजे पर नहीं पहुंचे तो हमे जलवायु
संकट के भयानक परिणामों से गुजरना होगा जिसमे तमाम देश तो अपना अस्तित्व ही गँवा
बैठें गे |
हमारे
प्रधानमंत्री मोदी जी गला फाड़ कर विदेशों में चिल्लाते फिरते हैं कि आतंकवाद को
फिर से परिभाषित किये जाने की जरुरत है पर अपने ही देश में बिहार के चुनाव में गाय
के पोस्टर लगवा कर चुनाव जीतने का दम भरते हैं | देश में फ़ैल रही असहिष्णुता पर
वैज्ञानिकों और बुध्दजीवियों के प्रतिरोध को न वे संज्ञान लेते हैं और न ही उनसे
बात करना पसंद करते हैं |इसके इतर उनकी पार्टी के सांसद और उनकी सरकार के मंत्री
भड़काऊ बयान देकर देश में उन्माद का माहौल पैदा करते है जो खुद में अपने तरह की
दहशतगर्दी ही है | पर हमारे बड़बोले प्रधान सेवक चुप्पी साधे रहते हैं |जो प्रधान
मंत्री मँहगाई,भ्रष्टाचार और देश में फ़ैल रही असहिष्णुता पर देश से आँख न मिला पा
रहा हो वह विदेशों में चीखता फिरता है कि न हम न आँख दिखा कर बात करेंगे और न ही
आंख झुका कर बात करेंगे |हम आंख मिला कर बात करेंगे |पर मेरे भाई देश से तो आंख
मिला कर बात करो ,उसकी बात सुनो और अपने लम्बे चौड़े वायदों को पूरा करने का देश की
जनता को भरोसा तो दो |
यह खुला सच है कि वैश्वीकरण और उदारीकरण के कारण अपराध - जनित आय को दुनियाँ में कहीं भी लगाने की क्षमता बढ़ गयी है | इक्कीसवीं सदी में यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है जब एक बटन दबाने से धन का अवैध प्रवाह सीमा पार चला जाता है | हथियारों और गोला बारूद की तस्करी का आतंकवाद को बढ़ावा देने में अहम रोल है | ए के ४७ और ए के ५६ जैसे खतरनाक हथियार आतंकवादियों के पास इसी तस्करी के जरिये पहुँचते हैं | दुश्मन देश अपने शत्रु देश के खिलाफ आतंकवाद का इस्तेमाल खुलेआम करते हैं | पाकिस्तान इसका खुला उदहारण है और पाकिस्तान के पूर्व वजीरे आजम जनरल मुशर्रफ अपने बयानों इसका खुलासा भी कर चुके हैं | संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस आतंकवाद को रोकने की पहल कदमी की और करार पर तमाम देशों ने हस्ताक्षर भी किये पर नतीजा सिफर ही रहा | आतंकवाद के बढ़ावे में काले धन की भी अपनी भूमिका है क्योंकि काला धन काले कामों की प्रमुखता पर ही फलता फूलता है | सच बात यह है कि दुनिया भर आई एस की बढती ताकत अमेरिका और पश्चिमी देशों की गलत नीतियों का नतीजा है | गत दिनों ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर ने इराक़ जंग में भागीदारी के लिए इराक़ और पूरी दुनियाँ से माफ़ी मांगी थी | यदि इराक़ युध्द न हुआ होता तो आज आई एस जैसा चरमपन्थी संगठन अस्तित्व में ही न आया होता | खुद अमेरिका ने ही दहशतगर्दी रोकने के नाम पर आतंकवादी संगठनों को शह दी | इराक़ युध्द के बाद अलकायदा से अलग होकर आई एस अस्तित्व में आया | मजबूत आर्थिक ढांचें और कुछ देशों की गुप चुप मदद से से ही आई एस दुनियाँ भर को चुनौती दे रहा है | रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जिन ४० देशों द्वारा आई एस के फंडिंग की बात कही है उनमें सिर्फ मजहबी देश ही नहीं हैं बल्कि वे देश भी हैं जिनके अपने राजनीतिक और आर्थिक हित भी हैं | इंसानियत और अमन के दुश्मन आई एस को तभी ख़त्म किया जा सकता है जब उसकी आर्थिक जड़ों को समाप्त किया जाये | सबसे पहले उन देशों की लगाम कसनी होगी जो इनको आर्थिक इमदाद पहुंचा रहे हैं | इसके बाद तेल कुओं से उनका नियंत्रण छीनना होगा | आर्थिक रूप से कमजोर पड़ने पर इंसानियत का यह दुश्मन अपने घुटने टेकेगा |
यह खुला सच है कि वैश्वीकरण और उदारीकरण के कारण अपराध - जनित आय को दुनियाँ में कहीं भी लगाने की क्षमता बढ़ गयी है | इक्कीसवीं सदी में यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है जब एक बटन दबाने से धन का अवैध प्रवाह सीमा पार चला जाता है | हथियारों और गोला बारूद की तस्करी का आतंकवाद को बढ़ावा देने में अहम रोल है | ए के ४७ और ए के ५६ जैसे खतरनाक हथियार आतंकवादियों के पास इसी तस्करी के जरिये पहुँचते हैं | दुश्मन देश अपने शत्रु देश के खिलाफ आतंकवाद का इस्तेमाल खुलेआम करते हैं | पाकिस्तान इसका खुला उदहारण है और पाकिस्तान के पूर्व वजीरे आजम जनरल मुशर्रफ अपने बयानों इसका खुलासा भी कर चुके हैं | संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस आतंकवाद को रोकने की पहल कदमी की और करार पर तमाम देशों ने हस्ताक्षर भी किये पर नतीजा सिफर ही रहा | आतंकवाद के बढ़ावे में काले धन की भी अपनी भूमिका है क्योंकि काला धन काले कामों की प्रमुखता पर ही फलता फूलता है | सच बात यह है कि दुनिया भर आई एस की बढती ताकत अमेरिका और पश्चिमी देशों की गलत नीतियों का नतीजा है | गत दिनों ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर ने इराक़ जंग में भागीदारी के लिए इराक़ और पूरी दुनियाँ से माफ़ी मांगी थी | यदि इराक़ युध्द न हुआ होता तो आज आई एस जैसा चरमपन्थी संगठन अस्तित्व में ही न आया होता | खुद अमेरिका ने ही दहशतगर्दी रोकने के नाम पर आतंकवादी संगठनों को शह दी | इराक़ युध्द के बाद अलकायदा से अलग होकर आई एस अस्तित्व में आया | मजबूत आर्थिक ढांचें और कुछ देशों की गुप चुप मदद से से ही आई एस दुनियाँ भर को चुनौती दे रहा है | रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जिन ४० देशों द्वारा आई एस के फंडिंग की बात कही है उनमें सिर्फ मजहबी देश ही नहीं हैं बल्कि वे देश भी हैं जिनके अपने राजनीतिक और आर्थिक हित भी हैं | इंसानियत और अमन के दुश्मन आई एस को तभी ख़त्म किया जा सकता है जब उसकी आर्थिक जड़ों को समाप्त किया जाये | सबसे पहले उन देशों की लगाम कसनी होगी जो इनको आर्थिक इमदाद पहुंचा रहे हैं | इसके बाद तेल कुओं से उनका नियंत्रण छीनना होगा | आर्थिक रूप से कमजोर पड़ने पर इंसानियत का यह दुश्मन अपने घुटने टेकेगा |
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