Saturday, 5 March 2011

दोस्तों के दोस्त - अनिल सिन्हा


भगवान स्वरूप कटियार


हरदिल अजीज वरिष्ठ पत्रकार- लेखक साथी अनिल सिन्हा के आकस्मिक निधन से मीडिया जगत समेत साहित्य,कला तथा संस्कृतिकर्मियों की दुनिया को गहरा झटका लगा है.यह एक अप्रत्याशित स्तब्ध करने वाला आघात है।उन्होंने गत् 25 फरवरी 2011 को दिन में 11 .50 पर् पटना के मगध अस्पताल में अन्तिम सांस ली और जिन्दगी की ही तरह ही मौत से भी लडते हुए हम सबका साथ छोड दिया.चलते- फिरते किसी हरदिल अजीज इंसान का अनायास चले जाना दुखद और स्तब्धकारी तो है ही अविश्वसनीय भी लगता है. अनिलजी गत 21 फरवरी को अपनी पत्नी आशा जी के साथ अपनी छोटी बहिन और उसके परिवार से मिलने पटना जा रहे थे .पटना से उनका गहरा जुडाव और लगाव था.उनके अधिकाँश परिजन पटना में ही रह्ते थे. उनकी शुरुआती जिन्दगी पटना से ही प्रारम्भ हुई थी.रास्ते में पटना जाते हुए मुगलसराय के आसपास सोते में उन्हें ब्रेनसट्रोक हुआ जिसका पता तब चला जब उनकी पत्नी आशाजी ने हांथ पकड कर उळाना चाहा पर उळने के बजाय उनका हांथ निर्जीव होकर गिर गया.आशाजी के दुख और मनास्थिति की हम कल्पना कर सकते हैं.उन्होंने तुरन्त पटना में अपने रिश्तेदारों को फोन करके कहाकि पटना स्टेशन पर डाक्टर और एम्बुलेंस लेकर आजांय .पटना पहुंच कर मगध अस्पताल में अनिलजी का इलाज शुरू हुआ जहां चिकत्सकों ने बताया कि इनके ब्रेनस्टेम में क्लोटिंग हो गयी है जिसका इलाज क्लोटिंग होने के तीन घंटे की अन्दर ही संभव है ,यह इलाज भी सिर्फ दिल्ली ,बम्बई और कोलकता में ही संम्भव है.अनिलजी डीप कोमा में चले गये .खबर मिलते ही दोनो बेटियां ऋतु,निधि दोनों दामाद अनुराग और अरशद पटना पहुंच चुके थे.सपोर्टिव ट्रीट्मेन्ट चल रहा था.सभी लोग इस इंतजार में थे कि वे कोमा से बाहर आयें तो दिल्ली ले जायं .पर वेन्टीलेटर पर रह्ते हुए कोमा की स्थिति में मरीज को कहीं शिफ्ट करना संभव नहीं होता है.शाश्वत और दिव्या भी अमेरिका से पटना के लिए रवाना हो चुके थे।सबके चेहरों पर् गहरी चिंता और उदासी के साथ दिलों में एक उम्मीद पल रही थी.जिस किसी को खबर मिलती चिन्ता और शोक में डूब जाता.यह सब कैसे हो गया अचानक अप्रत्याशित.लखनऊ में हम सब षमषेर,केदार नागार्जुन जन्मशती समारोह की तैयारी में जुटे थे.इस कायर््ाक्रम की सारी परिकल्पना एवं तैयारी अनिलजी की ही थी ,सारे वक्ताओं से उन्होंने व्यक्तिगत सम्पर्क कर कार्यक्रम में शिरकत के लिए आग्रह किया था. अनिल छोट-बडे सबके दिलों के बहुत करीब थे इसलिए इस आघात से सभी आहत थे.हम और कौशल जी दोनों 24फरवरी को सुबह आळ बजे पटना के मगध अस्पताल पहुंच चुके थे.अस्पताल के तीसरे तल के आई.सी.यू. वार्ड के बैड नम्बर 9 पर अनिलजी अचेत अवस्था में लेटे हुए थे.उनके शरीर के सारे अंग ळीक से काम कर रहे थे सिर्फ दिमाग के सिवा. दिमाग से काम भी तो बहुत लिया था उन्होने .लिखने-पढने के अलावा अपने दोस्तों और समाजिक सरोकारों की चिन्ताओं का बोझ उन्होने अपने नाजुक् से दिमाग पर ले रखा था. अनिलजी पूरी तरह अचेत थे और डीप कोमा थे. पर चेहरे पर वही सादगी का तेज,सौम्यता ,भोलापन और वेलौस दोस्ती का भाव रोशनी की चमक की तरह मौजूद था .हम सब की एक ही चिंता थी कि अनिलजी कोमा से बाहर आयें . पट्ना के सारे पत्रकार,चित्रकार।संस्कृतिकर्मी लेखक् तथा राजनैतिक मित्र जो भी सुनता पटना के मगध अस्पताल की ओर बदहवास सा भागता चला आता .कैसे हैं अनिलजी, कब तक ळीक होंगे। उनकी हम सबको बेहद जरूरत है।पटना रेडियो उनकी बीमारी का बुलटिन लगातार प्रसारित कर रहा था।दिल्ली और लखनऊ के पत्रकार ,लेखक संस्कृति कर्मी कौशल जी से लगातार फोन पर हालचाल ले कर चिन्तित हो रहे थे। मंगलेश डबराल,वीरेन्द्र यादव, अमेरिका से इप्टा के राकेष सभी लोग लगातार अजय सिंह से फोन पर हालचाल ले रहे थे और चिंतित हो रहे थे।गंगाजी,गौड्जी, आर के सिन्हा आदि लगातार फोन पर हालचाल ले रहे थे और दुखी हो रहे थे पटना में आलोक धन्वा का हाल तो बेहद बुरा था.आई़.सी.यू़. में वे अनिलजी को चिल्ला चिल्ला कर बुलाते हु पडे. लगभग सभी का एक जैसा हाल था .जो नहीं रो रहे थे ,वे अन्दर से रो रहे थे.अनिलजी के दोस्तों की दुनियंा लुट रही थी.सब अपने को कंगाल महसूस कर रहे थे. दोस्तों के दोस्त ,हमारे सुख-दुख के सच्चे साथी ,हमारी हर लडाई के अग्रणी योध्दा अनिल सिन्हा का अचानक अप्रत्याशित ढंग हमारे बीच से चला जाना हम सब के लिए एक गहरा आघात है .उनके जैसा सादा - सच्चा इंसानी इंसान भला हमें कहां मिलेगा . संघर्श में तपा निर्मल व्यक्तित्व ,क्रान्तिकारी वाम राजनीत और संस्कृतिकर्म के अथक योध्दा अनिल सिन्हा अपने पीछे कितना सूनापन छोड गये हैं इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है. बेषक हमने एक मजबूत ,प्रतिबध्द और ऊर्जावान् ऐसा साथी खोया है जिससे हमारे सांस्कृतिक आन्दोलनों अभी बहुत कुछ मिलना था और नई पीढी को बहुत कुछ सीखना था . वे सत्तर के दषक के बाद चले संास्कृतिक आन्दोलन के हर पडाव के साक्षी ही नहीं निर्माता भी थे . वे कलाओं के अन्तर्सम्बधों पर जनवादी प्रगतिषील नजरिये से गहन विचार और समझ विकसित करने वाले विरले समीक्षक थे . वे मूल्यनिश्ळ पत्रकारिता के मानक थे .साथी अनिल सिन्हा का जन्म 11 जनवरी 1942 को जहानाबाद ,गया, बिहार में हुआ था . उन्होंने पटना युनीवर्सिटी 1962 में हिन्दी में एम.. किया था . युनीवर्सिटी की चाटुकारिता पूर्ण घटिया राजनीत से क्षुब्ध होकर उन्होंने अपना पी एच डी कर्म अधूरा छोड दिया .उन्होने कई तरह के महत्वपूर्ण कार्य किये थे. प्रूफरीडिंग , प्राध्यापकी ,विभिन्न विशयों पर षोध जैसे कार्य उन्होंने किये थे . सत्तर के दषक में उन्होंने पटना सेविनिमयनाम की साहित्यिक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया जो अपने समय की चर्चित पत्रिका रही है . वे आर्यावर्त, आज , ज्योत्सना, जन, दिनमान से बतौर लेखक एवं पत्रकार जुडे रहे . वर्श 1980 में जब लकनऊ से अमृत प्रभात निकलना षुरू हुआ ,उन्होंने इसमे काम करना शुरू किया.तब से लखनऊ उनका स्थायी निवास बन गया .वे लाखनऊ के महानगर , इन्दिरा नगर आदि मुहल्लों में अपने साथियों के साथ रहे . अन्त में 3/30 पत्रकारपुरम गोमती नगर में उनका स्थायी आषियाना बन गया .उनका घर भी उन्ही की तरह सादगी और नैसर्गिक सौन्दर्य से भरपूर सचमुच घर है महज मकान नहीं . अमृत प्रभात बन्द होने के बाद उन्होंने लखनऊ में नव भारत टाइम्स ज्वाइन किया जिसमें वे बन्द होने तक काम करते रहे . नव भारत टाइम्स बन्द होने के बाद वे विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन करते रहे .हिन्दुस्तान की अधिकाँश पत्र- पत्रिकाओं अनिलजी का लिखा प्रकाषित हुआ है. उनके लेखन में सादगी और धार दोनो थे .राष्ट्रीय सहारा में उन्होंने सृजन पृश्ळ का भी संपादन किया . कहानी ,समीक्षा, आलोचना, कला समीक्षा ,भेंटवार्ता, संस्मरण आदि कई क्षेत्रों में काम किया. उनका कहानी संग्रहमळ“ 2005 में भावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ. उनकीहिन्दी पत्रकारिता: इतिहास, स्वरूप, एवं संभावनाएंभी प्रकाशित हुई जो पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पुस्तक है. उनका अनुवाद कार्यसाम्राज्यवाद का विरोध और जातियों का उन्मूलनअभी हाल ही में ग्रंथषिल्पी से प्रकाषित होकर आया है. अनिल सिन्हा एक बेह्तर इंसानी दुनिया बनाने के लिए निरन्तर संघर्ष में विशवास रखते थे .उनका मानना था कि रचनाकार का काम हमेशा एक बेहतर समाज की तामीर करना है,उसके लिए लडना और संघर्श करना है. उनका संपूर्ण रचनाकर्म इस ध्येय को समर्पित था. वे जनसंस्कृति मंच के संस्थापकों में थे. वे उत्तर प्रदेश जनसंस्कृति मंच के प्रथम सचिव रहे और उन्होंने सांस्कृतिक आन्दोलनों का क्रान्तिकारी नेतृत्व किया. वे जनवादी आन्दोलनों के प्रकाशस्तंभ थे . इंडियन पीपुल्स फ्रंट जैसे क्रान्तिकारी संगळनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. भाकपा (माले) से उनका जुडाव उस समय से है जब वह भूमिगत संगळन था. उनका 3/30 पत्रकारपुरम गोमती नगर हम सब के लिए एक ऐसा छायादार दरख्त था जिसकी ळंडी छांव में हम सब साहित्य- संस्कृतिकर्मी आश्रय और दिषा पाते थे.हमेंउनकी विरासत पर गर्व है उसे जिन्दा रखने और आगे बढाने के लिए हम संकल्प बध्द हैं. अनिल सिन्हा जैसे साथी कभी नहीं मरते . अपने काम और विचारों के साथ वे सदैव हमारे बीच हमारे साथ रहें गे.उनका दोस्ताना लहजा और अपनापन सदैव हमारे साथ रहेगा जो हमें हर मोड पर ताकत, दिशा और प्रेरणा देता रहेगा.

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