Sunday, June 19, 2011

बाबा रामदेव की विश्वसनीयता पर उठते सवाल


भगवान स्वरूप कटियार
इस देश में धर्म और अध्यात्म के पाखंड के जरिये धर्मभीरु जनता को आदिकाल से ठगा जा रहा है . इसी हिन्दू धर्म की एक बड़ी आबादी( शूद्रों ) पर विद्या ग्रहण करने से लेकर शास्त्र पढ़ने और उन्हें सुनने तक पर रोक लगायी गयी ़मन्दिर प्रवेश तो उनके लिए पूर्णरूप से वर्जित किया गया तथा वर्ण व्यवस्था ने हमारे सामाजिक ढांचे को कमजोर और छिन्न भिन्न कर रखा था ।यही बजह रही कि मुठ्ठी भर हमलावर हमे़ं सदियों तक लूट्ते रहे . महामना चारवाक और बुध्द ने जब हिन्दू धर्म की तर्क संगत आलोचना की तो उन्हे कड़े विरोधों का सामना करना पड़ा जबकि महान दार्शिनक चार्वाक स्वयं ब्राह्मण थे ़उनके भौतिकवादी दर्षन को “यावत जीवेत सुखम जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत “ जैसी गलत व्याख्याएं करके उसकी उपेक्षा की गयी और समतामूलक तर्कसंगत बौध्द् धर्म भारत को छोड़ कर पूरे दक्षिण एषिया में फैला . सच कहा जाय तो मार्क्सवाद बुध्द और चार्वाक के भौतिकवादी दर्षन का विस्तार है . इन दोनों दार्षनिकों ने भी सम्पत्ति के अधितपत्त को ही दुख का कारण बताया था . हीगेल वहां तक नहीं पहुच पाये पर मार्क्स ने इस बात को पकड़ा और सम्पत्ति को प्राकृतिक संसाधन है इसलिए यह सामूहिक है किसी एक नहीं। इसीलिए निजी सम्पत्ति के उन्मूलन की मार्क्स ने पुरजोर वकालत की । इसके बाद भारत में राहुल सांस्कृत्यायन और भगवत शरण उपाध्याय जैसे तमाम लोगों ने इसको आगे बढ़ाया ़इन तथ्यों के उल्लेख का आषय सिर्फ यह कि देष के अधिकांश हिन्दू धर्माचार्यों ने धर्म काउपयोग निजी लाभ के ले किया ़ आषाराम बापू ,सुधांशु महारज से लेकर बाबा जय गुरुदेव और बाबा रामदेव तक ने अध्यात्म ,योग और धर्म के जरिये देष की भोली जनता को ठगा है । कुछ खास राजनैतिक दल जो धर्म की राजनीत की ही रोटी खाते हैं ने इस ठगी को बढ़ावा देते है़ इससे ेउनका वोट बैंक पक्का होने के साथ साथ धनतंत्र भी मजबूत होता है ।
जहां तक बाबा रामदेव का सवाल है , इनका इतिहास बहुत घुमावदार और संदिग्ध है . बाबागीरी और योग से सैकड़ों अरब रुपये की एम्पायर खड़ी करने वाले बाबा निहायत स्वार्थी और समझौतापरस्त हैं और एहसान फरमोष भी . जिससे फायदा उठाते हैं उसी को दगा भी देते हैं ़नेताओं की तरह इनका कोई ईमान कौल नहीं है . कब अपने बयान से पलट कर पल्टासन लगा जॉय कुछ कहा नहीं जा सकता ़ आज से दो ढाई वर्श पहले विष्व हिन्दू परिशद और संघ परिवार ने गंगा को राश्ट्रीय धरोहर घोशित करने के लिए हरिद्वार से आन्दोलन षुरू किया और इसे राश्ट्रीय मुद्दा बना कर राजनैतिक रूप में भुनाना चाहती थी . बाबा रामदेव की लोकप्रियता का लभ उठाने के लिए बाबा को भी आन्दोलन में षमिल कर लिया . पर बाबा ने अपनी चालाकी से इस पूरे आन्दोलन को हाइजेक कर कानपुर में गंगा प्रदूषण और राष्ट्रीय धरोहर का मुद्दा बना कर संघ और विश्वहिंदू परिषद् से अलग हट कर धरना दिया और कानपुर के रहने वाले केन्द्रीय मंत्री श्री प्रकाष जायसवाल के माध्यम से प्रधान मंत्री से भेंट की और प्रधान मंत्री ने रामदेव की मांगों को मानते हुए गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया और गंगा बेसिन अथार्टी बनााने का ऐलान किया . इस प्रकार हिन्दुत्व आधारित यह मुद्दा भाजपा,संघ और विष्व हिन्दू परिषद् के हांथों से खिसक गया और श्रेय बाबा ने ले लिया और सरकार से बाबा को क्या मिला वह बाबा और सरकार के बीच ही है . बाबा काले धन और भ्रष्टाचार का शोर मचा कर अपने काले कारोबार को ढंके रखना चाहते थे किन्तु अन्ना हजारे के सिविल सोसाइटी के भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन से बाबा को लगा जैसे उनका मुद्दा हाइजेक हो गया हो जिसके बूते पर वह सरकार को ब्लैकमेल करते हुए अपने काले कारोबार को बढ़ा रहे थे . प्रेस वार्ताओं में बाबा के चेहरे के भाव और उनके सहयोगी बालकृष्ण के चेहरे के भाव साफ बता रहे हैं कि वे अन्दर से ेकितना डरे हुए ,झूठे और कमजोर हैं .बाबा ने गंगा को रााश्ट्रीय नदी घोषित करने पर प्रधान मंत्री का सन्तों द्वारा अभिनन्दन समारोह हरिद्वार में आयोजित करना चाहा और इसके लिए नाराज संघ परिवार को भी राजी कर लिया था पर साध्वी प्रज्ञा सिंह का मुद्दा आजाने के कारण संघ परिवार के खासमखास रामानंदाचार्य हंस ने इस कार्यक्रम को विफल बना दिया .
सन १९९६ तक रामदेव अपने दो साथियों कर्मवीर और बालकृश्ण के साथ एक ही साइकिल पर सवार होकर आर्य समाज से जुड़ी शिक्षण संस्थाओं में हवन कराने जाया करते थे खन्ना मिष्ठान भंडार कनखल के मालिक बतााते हैं कि १९९८ में बाबा ने खड़ाऊ से एक वक़ील् पिटाई कर दी थी और वकील का सर फट गया था , कारण था कि उस वकील ने हरिद्वार कचहरी में बाबा को ढोंगी पाखंडी कह दिया था . तब सारे वकीलों ने एक होकर बाबा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराायी . बाबा गिरफ्तारी से बचने के लिए बहुत दिन तक फरार रहे और अन्त में वकीलों से माफी मांग कर समझौता कर लिया . इससे साफ जाहिर बाबा बेहद चालाक और फितरती है और अपने स्वार्थ के लिए अन्य बाबाओं की तरह किसी स्तर तक गिर सकते हैं . देषभक्ति और समाज सेवा के मुहाविरे सिर्फ चालबाजी है . बाबा कभी कभी संघ परिवार और कभी कंाग्रेस से निहित स्वार्थ के लिए नजदीकियां और दूरियां बनाते रहे जिससे उनकी विष्वसनीयता घटी है . कालेधन के मुद्दे पर फिर संघ परिवार का सहारा लिया और साध्वी ऋतम्भरा उनके मंच पर बाकायदे उपस्थित दिखीं . आज बाबा अरबों रुपयों की सम्पत्ति के मालिक और कई ट्रस्टों के चेयरमैन हैं . बाबा ने ना तो कभी गरीबों के लिए निशुल्क शिविर लगाये और ना ही कभी कभी निषुल्क इलाज ही किया . फिर कैसे इन्हें देषभक्त और जनसेवक कहा जाय . बाबा ने बड़े बड़े औद्योगिक घरानों और बालीवुड फिल्म स्टारों के घरों में जा जा कर योगा सिखाया पर किसी गांव या मलिन बस्ती में बाबा ने झांकने की जुर्रत नहीं की . बाबा ने रांची के ेकेन्द्रीय मंत्री सुबोधकान्त सहाय से नजदीकी बढ़ा कर रंाची और हरिद्वार में मेगा फूडपार्क की स्थापना की , तब सहाय् खाद्य प्रसंस्करण म्ंत्री थे . बताया जाता है कि रांची वाले फूड्पार्क में सहाय पार्टनर थे . बताया जाता है दोनों फूड््पार्कों के लिए केन्द्र सरकार से ५॰-५॰ लाख अनुदान के रूप में बाबा को मिले थे . आज हरिद्वार का मेगाफूड पार्क १॰॰ करोड़ की सम्पत्ति है , बाबा अपने योग और अध्यात्म का उपयोग अपने ट्रस्टों के लिए धन जुटाने में करते रहे हैं बाबा की सारी जुगाड़ इसी के लिए होती रही है . कल तक कनखल हरिद्वार की गलियों में साइकिल से घुमने वाले फक्कड़ बाबा के पास आज करीब १२॰॰ करोड़ की सम्पत्ति है . वे स्काटलैण्ड में एक द्वीप के मालिक बताये जाते हैं . अन्ना हजरे के टीम के सदस्य शान्ति भूषण और प्रशांत भूषण पर वंशवाद का आरोप लगाने वाले बााबा खुद ही वंषवाद चला रहे हैं . रामदेव के भाई रामभरत , बहनोई यषदेव षास्त्री रामदेव का कारोबार देखते हैं . उनके माता पिता भी साथ रहते हैं . कहते हैं साधू का कोई परिवार नहीं होता पर बाबा का तो पूरा परिवार उनके साथ ही रहता है . सही मायने में बाबा साधू नहीं बल्कि कारोबारी हैं . बाबा ने पातंजलि योग पीठ के फेज एक के सामने खेती की जमीन पर अपने रहने के लिए महलनुमा एक विषाल आवास बनाया है . बाबा ने गांव पदार्था में जो मेगा फूडपार्क बनाया है वह भी खेती की जमीन पर है . हरिद्वार रुड़की रोड पर पातंजलि फेज एक और दो दोनों खेती की जमीन पर बने हैं . रामदेव की बजह से इस क्षेत्र की जमींने महगी हो गयीं हैं और खेती की जमीनें सिकुड़ रही हैं . बाबा रामदेव के कारोबारी सहयोगी आचार्य बालकृश्ण नेपाली मूल के हैं और उन्होंने गलत जानकारी देकर अपना पासपोर्ट बनवाया और विदेष यात्राएं भी की . पता चला है कि रामदेव की कंम्पनियों की ओर से बेंची गयी कई खेप औशधियां खारिज कर वापस कर दी गयी हैं जिसमें षिलाजीत बगैरह भी हैं . योग के जरिये और बड़े पूंजीपतियों के पैसे से बाबा ने एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया है जो किसी संन्यासी का तो नहीं हो सकता . बाबा का बड़्बोलापन और अहंकार किसी संन्यासी का चरित्र प्रतिपादित नहीं करता बल्कि रामलीला मैदान में अनशन का पंच सितारा इंतजाम बाबा की संम्पत्ति के वैभव को ही दर्शाता है . इस प्रकार तथाकथित इस सन्यासी की पूरी सन्यासी निश्ठा ही सवालों के घेरों में है . बाबा के सहारा परिवार और सजातीय होने के कारण मुलायम सिंह से घनिश्ठ संम्बन्ध रहे हैं और इन दोनों ने भी बाबा के कारोबार को प्रमोट किया .

मकबूल की मकबूलियत पर दुनियां फिदा

भगवान स्वरूप कटियार
मकबूल फिदा हुसेन एक तरह से अपनी पूरी उम्र पूरि सक्रियता के साथ जी और जीने और काम करने का जोस खरोश आखिरी दम तक खत्म नहीं हुआ . उनका मानना था कि जिन्दगी में मुश्किलें , दिक्कतें , और तकलीफें तो मुतवातिर रहती ही हैं और हमेशा रहेंगी पर इससे जिन्दगी थोड़े ही रुक जाती है . व्ह तो एक दरिया है जिसे मुतवातिर बहना है तो बहना है . तमाम बाधाओं और रुकावटों के बाबजूद दरिया की तरह जिन्दगी भी अपना रास्ता ढूढ़ ही लेती है. यह था हुसेन साहब के जीने का फलसफा जो मरने के बाद रंगों की दुनिया को उदासा कर गये . उनके शोख रंग कूंची जिनसे उन्होंने जिन्दगी को तमाम नये शेड्स दिये रंज डुबे में अपने अजीज चित्रकार को याद कर रहे हैं .मकबूल सच में मकबूल थे तभी तो वे अपने दोस्तों और दुष्मनों में एक साथ याद किये गये . अन्त में बाल ठाकरे साहब ने भी अपनी ख्वाहिश में कहा कि हुसेन साहब का शव हिन्दुस्तान वापस आना चाहिए क्योंकि वे बुनियादीरूप से हिन्दुस्तान के थे और सच्चे हिन्दुस्तानी थे . यद्यपि कुछ कट्टर हिन्दुत्ववादियों की बजह से उनकी कुछ हिन्दू देवी देवताओं की पेन्टिग्स को लेकर वे हिन्दुस्तान छोड़कर कतर चले गये और वहां के नागरिक हो गये . इस महान चित्रकार का जन्म महाराष्ट्र के पंढरपुर गाँव में १७ सितम्बर १९१५ में हुआ था . उनके पिता का निधन हुसेन के बचपन में ही हो गया था. ९५ वर्शीय हुसेन का निधन लंदन के रॉयल ब्रोम्प्टन अस्पताल में ९जून २॰११ में हुआ . फोर्ब्स पत्रिका ने हुसेन को भारत का पाब्लो पिकासो कहा . हुसेन ने पेंन्टिग का कहीं विधिवत प्रषिक्षण नहीं लिया . षुरुआती दिनों में वे मुम्बई में फिल्मों की होर्डिंग पेन्ट किया करते थे जिसके लिए उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे हुसेन किसी लीक पर चलने वाले चित्रकार नहीं थे बल्कि लीक तोड़कर कुछ नया जिसमें जोश ख़रोश और ताजगी के साथ साथ षोखी और कषिष भी हो . वे एक आजाद खयाल इंसान थे . हुसेन संम्पूर्णता से कभी आकर्शित नहीं होते थे और ही कभी उसके पीछे भागे ही . उनके लिहाज से संम्पूर्णता का अर्थ है समाप्ति ,अन्त ,मृत्यु जबकि हुसेन की कला का सत्य निरंतरता और प्रवाह है . वे जिन्दगी को भी इसी नजरिये से देखते हैं . जीवन कभी रुकता नहीं है बल्कि मृत्यु से परे भी जीवन है जीवन की नयी शुरुआत के रूप में.जब रजस्थान की पृष्ठभूमि पर वेथ्रू दि आइज आफ पेन्टर' फिल्म बना रहे थे तो किसी ने पूछा कि फिल्म की कहानी क्या है तो हुसेन साहब ने कहा इस फिल्म में कोई किस्सा कहानी नहीं है ,बस कुछ इम्प्रेसन्स ,कुछ शक्लें .कुछ सूरतें, एक छतरी ,एक लालटेन ,एक जोड़ी रजस्थानी जूते और एक गाय तथा राजस्थानी लोक जीवन के कुछ सुर ताल . हुसेन की द्दष्टि में हर चीज का अपना का अपना ओज है अपना आलोक है ओर उसकी उपस्थिति में ही उसकी पवित्रता निहित है . हुसेन कहते हैं कि अक्सर लोग लालटेन को देखने के बजाय चारो ओर उसकी मौजूदगी की बजह ढूंढते हैं , वह जल रही है तो रात और बुझी हे तो दिन . यह कोई नहीं देखता कि लालटेन किस नाज--अन्दाज से जमीन पर टिकी है . उसके पेंदे की गोलाई से उठती दो संतुलित बाांहों के बीच धरी षीषे की चिमनी , गुम्बद की गोलाइ ओर संम्पूर्ण ब्रम्हांन्ड का सिमिटा हुआ उजाला . यह हुसेन हैं जो सिमटे हुए उजाले में ब्रम्हांन्ड देख् लेते हैं . उनके लिए सुन्दरता उसमें नहीं है जिसका कोई प्रयोजन हो ,वह खुद उसके होने में है चाहे वे आकाष में उड़ते पहाड़ ले जाते हनुमान हों चाहे साइकिल पर सवार हुसेन हों . साइकिल का जादू पहाड़ की भव्यता से कम नहीं है .हुसेन के लिए कुछ भी निषिध्द नहीं है . उनके यहां छोटे -बड़े,ऊंच -नीच , पांच सितारा होटल के गलियारे और निजामुद्दीन के गलियारे से उठता धुआं किसी के बीच कोई भेद कोई अन्तर नहीं रहता . उनके लिए आधुनिकता का मतलब जिन्दगी के प्रति सूफियाना द्दष्टि में सन्निहित है . उनके यहां अधुनिकता पश्चिम से आयातित होकर नहीं आती . माडर्न आर्ट का एक मजेदार पेचीदा पहलू यह है कि देखने वाला अपनी मर्जी और मिजाज में तस्वीर को ढालने का हक रखता है . एक लिहाज से माडर्न आर्ट का मिजाज अमीराना नहीं बल्कि डेमोक्रेटिक है . जैसे कि देखने में व्यक्तित्व षहाना हो. लकीरों का तनाव खुद्दारी का एलान करता हो और रंगों की षोखी आत्म सम्मान और स्वाभिमान से परिपूर्ण हो . डा॰ लोहिया से हुसेन साहब के नजदीकी ताल्लुकात थे . लोहिया जी हुसेन में आधुनिक कला का लोकतंत्र देखते थे ़हुसेन ने डा॰ लोहिया का पेन्सिल डॉट स्कैच बनाया था जो बहुत पसन्द किया गया और बहुत पापुलार हुआ .डा॰ लोहिया के कहने पर हुसेन ने रामायण में भारतीय लोक पक्ष को गहराई से मह्सूस किया और रामायण के प्रसंगों पर सैकड़ों चित्र बनाये . लोहिया के मित्र बदरीविशाल पित्ती जो साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संम्पादक थे का घ्रर रामायण के १५॰ चित्रों से भर दिया और यह् कार्य बिना किसी धन के लालच के किया . हुसेन पर सांप्रदायिक और व्यवसायिक होने का आरोप लगाने वालों को हुसेन के इस पक्ष को भी देखना चाहिए . हुसेन ने महाभारत के चित्रों की एक श्रंखला बनायी . उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर ,शरत चन्द्र ,गालिब . इक़बाल ,फैज के भी चित्र बनाये . उन्होंने मदर टरेसा का सुन्दर सा स्कैच उनके जीवनकाल में ही बनाया . उनका इन्दिरा जी के साथ एक बच्चे के साथ ममतामयी चित्र बनाया जो बहुत पंसन्द किया गया . इस तरह हुसेन की कला के आयाम और संन्दर्भ बहुत व्यापक थे . हुसेन साहब अधिक उनमुक्त , अकुंठित , निश्च्छल , अनासक्त , ऊर्जावान और प्रयोगशील व्यक्ति थे ,अपनी कला में भी और अपने जीवन में भी . वे एक अच्छे दोस्त और आजाद खयाल इंसान थे . भारत सारकार ने उन्हें और उनकी कला को भरपूर सम्मान दिया ़उन्हें ùश्री ,ùभूशण और ùविभुशण से नवाजा गया . वे राज्यसभा के सदस्य भी नामित हुए .मक़बूल फिदा हुसेन ऐसे पहले भारतीय कलाकार थे जिन्हें जनमानस में बड़ी जगह मिली और जिन्होंने देश दुनियां में ऐसी ख्याति अर्जित की जिसे अभूतपूर्व कहा जा सकता है. वे जहां भी बैठते वहां कुछ कुछ कर रहे होते थे . कई लोगों को यह बात ख्टकती भी थी कि हुसेन चित्रकार की एकान्त साधना की जगह उसको सार्वजनिक बनाने में क्यों तुले रहते हैं . हुसेन साहब का य्ाह मानना था कि कैनवास पर जब तक तैल रंगों से तस्वीर बनाने की विधि को सहज नहीं बनाया जायेगा , आधुनिक भारतीय समकालीन चित्रकला लोगों के बीच स्वीकृत नहीं पा सकेगी . कलाकार एकान्त में कैनवास पर कुछ अदभुत रच सकता है ,इस मिथक को वे तोड़ना चाहते थे . इसके बाबजूद वे रामकुमार ,तैयब मेहता, गायतोंडे जैसे एकान्त साधकों के गहरे प्रषंषक रहे हैं . घोड़ा उनका प्रिय विषय था . वे आटोग्राफ देते समय अक्सर घोड़ा बना कर आटोग्राफ देते . हुसेन साहब घोड़े के रंगरूप के बहुत प्रशंसक थे और अश्वगति के तो वे थे ही . हुसेन करुणा ,संवेदना और मानवीय जिजीविषा के प्रखर चित्रकार थे . हुसेन ने अपने जिन साथियों ( हुसेन, रजा, सूजा,गादे बाकरे और कृश्णाजीआरा ) के साथ प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप की स्थापना की थी उनका आधुनिक भारतीय चित्रकला के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान है . उन्होंने माधुरी दीक्षित की फिल्महम आप के हैं कौन६७ बार देखी . उन्होंने माधुरी पर गजगामिनी नाम से फिल्म भी बनायी .उन्होंने माधुरी की खुबसूरत पेन्टिंग भी बनायी जिस पर लिखा फिदा . वे तब्बू और अमृता राव के भी फैन रहे .उन्होंने तब्बू पर आधारितमिनाक्षी टेल आफ थ्री सिटीज भी बनाई .वे अभिनेत्री विद्या वालान से भी प्रभावित थे हुसेन की आत्मकथाहुसेन की कहानी: अपनी जवानीएक मषहूर और विवादस्पद चित्रकार की दिलचस्प किताब है .